Location: रांची
संथाल परगना की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक स्थिति में बड़े पैमाने पर बदलाव हुआ है। अधिकांश जिलों की डेमोग्राफी पूरी तरह बदल गई है। इन जिलों में मुसलमानों की आबादी में अप्रत्याशित ढंग से वृद्धि हुई है। यह स्थानीय मुसलमान नहीं बल्कि बांग्लादेशी घुसपैठिए हैं। इलाके में आदिवासियों की संख्या तेजी से घट रही है। अब इनकी आबादी 26 प्रतिशत पर पहुंच गई है। जबकि मुसलमानों की आबादी में 23 से लेकर 25% तक वृद्धि हुई है। इन इलाकों में मुसलमान के साथ-साथ ईसाइयों की भी संख्या बढ़ी है। मुसलमानों की आबादी बढ़ने का एक मुख्य कारण भोले भाले आदिवासी लड़कियों को बहलाकर उनसे शादी करना है।
बांग्लादेशी घुसपैठियों ने झारखंड की स्थानीय निवासी होने का फर्जी तरीके से प्रमाण पत्र भी ले लिया है। राज्य सरकार की सरकारी योजनाओं का यह लाभ ले रहे हैं। जगह-जगह मदरसे और मस्जिदें बन गई हैं। आश्चर्यजनक ढंग से मतदाता सूची में भी इनका नाम दर्ज हो चुका है। मुसलमानों की की बढ़ती आबादी ने भाजपा की चिंता बढ़ा दी है। क्योंकि इस बार विधानसभा का चुनाव परिणाम पर इसका सीधा असर पड़ने वाला है।
2019 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद करीब 5 वर्षों में हर विधानसभा क्षेत्र में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या पहले की तुलना में 25000 से लेकर के 50000 तक बढ़ गई है। यानी विधानसभा क्षेत्रों का पूरा समीकरण ही बदल चुका है। सूत्रों ने बताया कि राजमहल विधानसभा क्षेत्र में 50000 के करीब मुस्लिम मतदाताओं की संख्या बढ़ गई है । राजमहल से लगातार दो बार चुनाव जीत रहे भाजपा विधायक अनंत ओझा की सीट खतरे में पड़ गई है। अनंत ओझा ने तो मतदाता सूची में दर्ज किए गए नाम और संख्या पर आपत्ति दर्ज करते हुए निर्वाचन आयोग को ज्ञापन दिया है। साथ ही मतदाता सूची से ऐसे लोगों का नाम हटाने का अनुरोध किया है।
इतने बड़े पैमाने पर मतदाता सूची की सही तरीके से जांच पड़ताल कर नाम हटाना संभव नहीं लग रहा है, क्योंकि अक्टूबर में विधानसभा का चुनाव भी होने वाला है। भाजपा की सुरक्षित माने जाने वाली सीट राजमहल इस बार खतरे में पड़ गई है। अनंत ओझा की चिंता बढ़ गई है।
राजमहल के साथ-साथ लगभग सभी विधानसभा क्षेत्रों की यही स्थिति है। मुस्लिम और ईसाई मतदाताओं की संख्या आदिवासियों से अधिक हो गई है । आदिवासी वोटर हाशिये पर चले गए हैं। ईसाई और मुस्लिम मतदाताओं के गठजोड़ भाजपा को हराने के लिए एकजुट है।
लोकसभा चुनाव में इसी गठजोड़ के कारण भाजपा को पांच आदिवासी बहुल क्षेत्रों में हार का सामना करना पड़ा। अब विधानसभा चुनाव में भी लगभग यही स्थिति रहने की संभावना है, तो फिर भाजपा कैसे चुनाव जीत पाएगी। दुमका से भाजपा प्रत्याशी सीता सोरेन की हार में जामताड़ा विधानसभा क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका रही। जामताड़ा ने भाजपा की जीत को हार में बदल दिया। यह इसलिए हो सका क्योंकि यहां मुस्लिम मतदाताओं का बोलबाला है।
संथाल परगना में भाजपा पहले से ही कमजोर है। यहां झारखंड मुक्ति मोर्चा मजबूत है। मुस्लिम मतदाताओं की बढ़ती संख्या से भाजपा का चिंतित होना स्वाभाविक है। इसीलिए भाजपा इस मुद्दे को जोरशोर से उठा रही है। लेकिन लगता नहीं है कि राज्य सरकार इस दिशा में कोई कार्रवाई करेगी क्योंकि वोट बैंक की राजनीति से इंडिया गठबंधन को ही फायदा होने वाला है।
झारखंड हाई कोर्ट ने भी बांग्लादेशी घुसपैठियों के मामले को गंभीरता से लेते हुए संथाल परगना के विभिन्न जिलों के उपायुक्त से रिपोर्ट मांगी है।
बहरहाल विधानसभा चुनाव के पहले कुछ होने जाने को नहीं है इसलिए भाजपा के लिए खतरे की घंटी है।