Location: Meral
मेराल: प्रखंड में मनरेगा योजना के तहत सामग्री आपूर्ति करने वाले वेंडरों की अधिकतर दुकानें सिर्फ कागजों में चल रही हैं। जमीनी हकीकत यह है कि नाम मात्र की इन दुकानों से हर साल करोड़ों रुपये की निकासी की जा रही है। मनरेगा के तहत कुल 22 वेंडरों का पंजीकरण किया गया है, लेकिन जब इनकी भौतिक सत्यापन की बारी आई तो अधिकतर दुकानें सिर्फ कागजी साबित हुईं।
जांच के दौरान हासनदाग, गेरुआ, सिरहे, पिंडरा, संगबरिया, दलेली, रजबंधा, रजहरा, मेराल, खोलरा, अकलवानी, गोंदा और तेनार समेत कई गांवों में रजिस्टर्ड दुकानों का कोई ठोस अस्तित्व नहीं मिला। वहीं, तीन-चार दुकानों को छोड़कर बाकी का कहीं अता-पता तक नहीं चल सका। आश्चर्यजनक रूप से मेसर्स जेके इंटरप्राइजेज, आरएस कंस्ट्रक्शन और आलमगीर अंसारी नामक तीन वेंडरों के पंजीकरण में संचालन स्थल का कोई जिक्र ही नहीं है, जिससे संदेह और गहरा गया है।
स्थानीय लोग इस पूरे मामले को ‘चलती-फिरती दुकानों’ का खेल बता रहे हैं, जहां कागजों पर फर्जी बिल लगाकर सरकारी धन की निकासी की जा रही है।
इस मामले में जब प्रखंड विकास पदाधिकारी (BDO) सतीश भगत से सवाल किया गया, तो उन्होंने कहा कि सभी वेंडरों की जांच कराई जाएगी और जो दोषी पाए जाएंगे, उनके खिलाफ कार्रवाई होगी।
अब सवाल उठता है:
- क्या सरकारी धन का गबन हो रहा है?
- वेंडरों की सत्यापन रिपोर्ट में इतनी लापरवाही क्यों?
- क्या इस खेल में कोई बड़ा नाम भी शामिल है?
अब देखना होगा कि प्रशासन इस घोटाले पर क्या कदम उठाता है या यह मामला भी फाइलों में दबकर रह जाएगा!