विधानसभा चुनाव 2024ः व्यक्ति से ज्यादा राजनीतिक पार्टी एवं तत्कालीन परिस्थितियों पर मतदान करने का गढ़वा का रहा है ट्रेंड.. 3

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गढ़वाःआजाद भारत के प्रथम बिहार विधानसभा का चुनाव 1952 में संपन्न हुआ था तब पलामू में दो ही चुनाव क्षेत्र थे,293 हुसैनाबाद शह गढ़वा,एवं 294 हुसैनाबाद शह गढ़वा. प्रथम बिहार विधानसभा चुनाव में 293 हुसैनाबाद शह गढ़वा से प्रथम विधायक स्व राज किशोर सिन्हा चुने गए थे.जबकि हुसैनाबाद शह गढ़वा विधानसभा चुनाव क्षेत्र से स्व देवीचंद पासी चुनाव जीतकर प्रथम विधायक बने थे. आजादी के बाद जब दूसरा चुनाव 1957 में बिहार विधानसभा का हुआ तब एकीकृत पलामू जिले में दो से बढ़कर सात विधानसभा चुनाव क्षेत्र का गठन हुआ, जिसमें प्रथम बार 314 गढ़वा विधानसभा चुनाव क्षेत्र का गठन हुआ, जिसके प्रथम विधायक कांग्रेस की सु श्री राजेश्वरी सरोज बनी.तभी से गढ़वा विधानसभा चुनाव क्षेत्र पलामू प्रमंडल का चर्चित विधानसभा क्षेत्र रहा है. क्योंकि यहां पर एक से बढ़कर एक करिश्माई छवि वाले विधायक तो तो चुने गए, पर स्वर्गीय गोपीनाथ सिंह, गिरिनाथ सिंह एवं सत्येंद्र नाथ तिवारी को छोड़कर किसी भी जनप्रतिनिधि को गढवा के मतदाताओं ने दोबारा चुनाव जीतने का मौका नहीं दिया है. तात्पर्य यह कि गढ़वा के मतदाता शुरुआती दौर से हीं जागरूक रहे हैं तथा आंख बंद कर मतदान करने के बजाय बड़े ही सोच विचार कर बगैर किसी झांसे में आए मतदान करते रहे हैं. वैसे भी यदि अब तक के चुनाव परिणाम पर गौर करें तो कुछ एक अपवाद को छोड़कर गढ़वा के चुनाव परिणाम में व्यक्ति से ज्यादा राजनीति पार्टी एवं राजनीतिक परिस्थितियों का ट्रेंड देखा गया है. कुल मिलाकर गढ़वा के संबंध में यह कहा जा सकता है कि यहां के मतदाता चमत्कार को नमस्कार नहीं किए हैं.

गढ़वा विधानसभा चुनाव क्षेत्र में व्यक्ति से ज्यादा राजनीतिक पार्टी एवं तत्कालीन राजनीतिक स्थिति ही यहां के मतदाताओं को ज्यादा मतदान के लिए प्रभावित किया है.इसे समझना हो तो गढ़वा से चुने गए प्रतिनिधियों पर गौर करेंगे तो समझ में आता है कि यहां के मतदातां ने व्यक्ति केंद्रित राजनीति को कभी महत्व नहीं दिया है. बल्की जैसी देश व राज्य में राजनीतिक स्थिति रही उसके अनुसार मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग विधानसभा के चुनाव में किए है जैसे 1969 के चुनाव मे गढ़वा के मतदाताओं ने जनसंघ जैसी राजनीतिक पार्टी के विधायक के रूप में स्व गोपीनाथ सिंह को अपना प्रतिनिधि चुना. यहां यह भी उल्लेखनीय है कि 69 के इस चुनाव में भारतीय राजनीति में जंनसंघ पार्टी जो उभरी थी, उससे पलामू के मतदाता काफी प्रभावित हुए थे क्योंकि तब के पलामू के कुल सात विधानसभा चुनाव क्षेत्र में से चार पर जनसंघ पार्टी को जीत मिली थी जिसमें गढ़वा से गोपीनाथ सिंह बिश्रामपुर से जागेश्वर राम लातेहार से जमुना सिंह तथा पांकी से रामदेव राम ने जीत का परचम लहराया था. सिर्फ हुसैनाबाद से भीष्म नारायण सिंह तथा लेस्लीगंज से स्वर्गीय जगनारायण पाठक की कांग्रेस से तथा भवनाथपुर संसोपा से हेमेन्द्र प्रताप देहाती विधायक बन पाए थे .

इतना ही नहीं भारतीय राजनीति से गढ़वा के मतदाता कितने प्रभावित रहे हैं इसे इससे भी समझा जा सकता है कि आपातकाल के बाद हुए चुनाव में गढ़वा विधानसभा चुनाव क्षेत्र से गणेश लाल अग्रवाल महाविद्यालय डाल्टनगंज के इतिहास विभाग के प्राध्यापक स्व विनोद नारायण दीक्षित तथा 1980 में युगल किशोर पांडे कांग्रेस से गढ़वा के लिए अपरिचित चेहरे होने के बावजूद गढ़वा से चुनाव जीतकर राजनीतिक पार्टी व देश की राजनीतिक परिस्थितियों के अनुसार कामयाब तो हो गए परंतु दोबारा यहां की जनता ने उन्हें मौका नहीं दिया.

वैसे भी राजनीतिक पार्टी के महत्व को इससे भी समझा जा सकता है कि एकीकृत बिहार में जब लालू राज सामने आया तब लगातार राजद सुप्रीमो लालू की पार्टी से पहले स्वर्गीय गोपीनाथ सिंह फिर उनके पुत्र गिरिनाथ सिंह गढ्वा से विधायक रहे. झारखंड राज्य के गठन के बाद धीरे-धीरे गढ़वा में राजद की पकड़ कमजोर होती गई और गिरिनाथ सिंह जो यहां अंगद की तरह पांव जमाए बैठे थे, ऐसा राजनीतिक रूप से हाशिए पर चले गए की 2009 के चुनाव में सत्येंद्र नाथ तिवारी जैसे नए चेहरे और उनकी नई पार्टी झारखंड विकास पार्टी से चुनाव हार गए, तथा अपनी खोई राजनीतिक विरासत को प्राप्त करने के लिए पिछले 15 वर्षों से लगातार संघर्ष कर रहे हैं इससे समझा जा सकता है की गढ़वा विधानसभा चुनाव क्षेत्र के मतदाता व्यक्ति से ज्यादा राजनीतिक पार्टी एवं तत्कालीन राजनीतिक स्थिति को गौरकर ही मतदान करते रहे हैं.

गढ़वा से चुनाव जीतने में मिली कामयाब विधायकों की चर्चित चेहरे में वर्तमान विधायक व झारखंड सरकार के पेयजल स्वच्छता मंत्री मिथिलेश कुमार ठाकुर की राजनीति पर भी गौर करें तो श्री ठाकुर की गढ़वा की राजनीति में इंट्री चौंकाने वाला नहीं बल्कि लगातार 10 वर्षों तक संघर्ष करने का रहा है. मिथिलेश कुमार ठाकुर के राजनीतिक जज्बा को इनके सफलता को श्रेय माना जा सकता है क्योंकि लगातार दो बार चुनाव हारने के बाद भी क्षेत्र में संघर्ष करने के बाद उन्हें 2019 में तीसरी तीसरी लड़ाई में तत्कालीन स्थानीय राजनीतिक परिस्थिति से विजय मिली है… जारी

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Vivekanand Upadhyay

Location: Garhwa Vivekanand Updhyay is the Chief editor in AapKiKhabar news channel operating from Garhwa.

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