विधानसभा चुनाव 2024: ग्लैमर और संघर्ष की राजनीति चली है भवनाथपुर में

Location: Garhwa

झारखंड के सीमांत पर स्थित भवनाथपुर विधानसभा क्षेत्र राजनीतिक रूप से जागरूक रहा है. परंतु यहां के लोगों ने चुनावी राजनीति में दलीय राजनीति से ज्यादा ग्लैमर और संघर्ष को मताधिकार के प्रयोग में महत्व दिया है. यही कारण है कि इस विधानसभा चुनाव क्षेत्र से जहां एक ओर नगर उटारी गढ़ परिवार की राजनीति चली वहीं दूसरी ओर समाजवादी विचारधारा की भी खूब संघर्ष दीखा.
भवनाथपुर विधानसभा चुनाव क्षेत्र के राजनीति को ग्लैमर एवं समाजवाद के संघर्ष का स्वरूप के चर्चा के दौरान समाजवादी नेता स्वर्गीय लाल हेमेंद्र प्रताप देहाती के संदर्भ में उनके साथ राजनीति किए बुधन पाल बताते हैं कि 1969 में नगर उंटारी गढ़ परिवार के ग्लैमर की राजनीति को पहली बार चुनौती देते हुए लाल हेमेन्द्र प्रताप देहाती संसोपा दल से विधायक बने थे. बतौर बुधन पाल तब लाल हेमेन्द्र की छवि एक ऐसे संघर्शशील एवं जुझारू नेता की बनी थी, जिनके संघर्ष के दिनों में भाषण सुनने के लिए दो चार सौ लोगों की भीड़ नुक्कड़ पर देखते हीं देखते लग जाती थी. लाल हेमेंद्र प्रताप देहाती के संदर्भ में और कई प्रकार के खिस्से हैं. बताया जाता है कि उन्हें संघर्ष की काफी कीमत भी चुकानी पड़ी थी,उन्हें पुलिसिया यातना भी दिया गया था पर लोकतंत्र की जीत हुई और भवनाथपुर के मतदाताओं ने जन मानस के लिए संघर्ष करने वाले लाल हेमेंद्र प्रताप देहाती को पहली बार गढ़ परिवार के शंकर प्रताप देव जो दो बार के विधायक थे, उन्हें राजनीतिक रूप से चुनौती दी. हालांकि लोग बताते हैं कि लाल हेमंत प्रताप देहाती की राजनीति तूफान की तरह भवनाथपुर के जमीन पर आई और 1969 से 72 तक 3 साल विधायक बनने के बाद ऐसी ठंड पड़ गई कि संसदीय राजनीति में दोबारा उन्हें सफलता हांथ नहीं लगी,

परंतु किस्मत भी कोई चीज होती है क्योंकि लाल हेमंत प्रताप देहाती के राजनीतिक जीवन में एक वैसा चमत्कारी पल भी भवनाथपुर विधानसभा क्षेत्र के लोगों को देखने का अवसर मिला,जब 2004 में इस क्षेत्र से नौजवान संघर्ष मोर्चा से विधायक बने भानु प्रताप शाही ने मुकदमा के कारण खुद मंत्री बनने में आए कानूनी बाधा को देखते हुए मधु कूड़ा सरकार में अपनी मंत्री की कुर्सी सुरक्षित रखने के लिए अपने पिता लाल हेमंत प्रताप देहाती को स्वास्थ्य मंत्री बना दिया और जैसे ही जेल से बाहर आए योजना के अनुसार स्वास्थ्य मंत्री की कुर्सी पर बैठ गए.

1990 के बात इस क्षेत्र की राजनीति परिस्थिति में व्यापक बदलाव देखने को मिला. आजीवन गढ़ परिवार के खिलाफ राजनीति करने वाले गिरवर पांडे को संघर्ष का उपहार मिला और वे 1990 में इस क्षेत्र से विधायक चुने गए. विधायक रहे और मंत्री भी बने. मुझे याद है 2090 का वह चुनाव जब साधनहीन गिरवर पांडे के पास एक मोटरसाइकिल तक खुद की नहीं थी जिसने वोट दिया उसी ने चंदा दिया और भवनाथपुर के मतदाताओं ने ही चंदा के सहारे मामूली चुनावी खर्च किया और चुनाव जीत दिया.सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि चुनाव जीतने के बाद गिरवर पांडे के पास इतना पैसे नहीं थे कि वे गढ़वा से विजय जुलूस निकालकर भवनाथपुर विधानसभा चुनाव क्षेत्र में गढवा से लौटे. विधायक का सर्टिफिकेट मिलने के बाद तब कहीं चंदा के सहारे संसाधन जुटाया गया और वे विधायक का सर्टिफिकेट लेकर नगर उंटारी के लिए लौटे. वैसे भी संघर्षील नेता की इस क्षेत्र के मतदाताओं ने कितना महत्व दिया इसका आकलन स्वर्गीय गिरवर पांडे के निधन के दिन देखने को मिला उनकी अंत्येष्टि राजकीय सम्मान के साथ कराने के अडचन में स्वर्गीय पांडे की मौत के बाद उनके गांव में हजारों लोगों की भीड़ घंटे चिलचिलाती धूप में तब तक जमी रही जब तक उनका राजकीय सम्मान के साथअंत्येष्टि नहीं किया गया. वैसी भीड पलामू प्रमंडल के किसी भी बड़े से बड़े नेता के लिए अब तक देखा व सुना नहीं गया है इससे समझा जा सकता है कि संघर्ष को भवनाथपुर की जनता कितना सम्मान देती है.

बाद के दिनों में इस क्षेत्र की राजनीति का रसूख भी बदला और गढ़ परिवार के लोगों की राजनीति करने की शैली भी, विशेषकर गढ़ परिवार के आनंत प्रताप देव के राजनीति में इट्री के बाद राजनीति पूरी तरह से बदल गई और जन सरोकार को लेकर संघर्ष करने के मामले में अनंत प्रताप देव भी लगातार सक्रिय रहे नतीजा रहा की 2009 के चुनाव में भवनाथपुर की जनता ने उन्हें भी सिर आंखों पर बैठाया तथा यहां तब के मंत्री भानु प्रताप शाही के बंद गाडी के काले शीशे की श्री शाही के विरोधियों ने खूब इस्तेमाल किया, ताकि भानु प्रताप शाही के संघर्षशील छवि पर आंच लगाई जा सके. 2009 का चुनाव परिणाम आपके सामने है.
. दलीय राजनीति से ज्यादा जनता के सवाल पर संघर्ष करने वाले नेता हीं यहां के मतदाताओं की पसंद रहे हैं, इसका आकलन इससे भी किया जा सकता है कि 2005 से पहले 15 वर्षों तक एकीकृत बिहार के लालू राज में यहां से डॉक्टर यासीन अंसारी तथा बसंत प्रसाद यादव जैसे नेताओं को लालटेन के सिंबल पर भी सफलता हाथ नहीं लगी और उन्हें राष्ट्रीय जनता दल के चलती में भी यहां की जनता ने पसंद नहीं कर यह जाता दिया की भवनाथपुर के लोग उसे ही पसंद कते हैं जो उनके सरोकार से जुड़ा रहता है. तात्पर्य यह कि 1969 के बाद से भवनाथपुर विधानसभा चुनाव क्षेत्र में ग्लैमर की राजनीति में जो विराम लगी,वह संघर्ष का स्वरूप ले लिया. लिहाजा जिन जिन नेताओं ने भवनाथपुर के मतदाताओं के लिए संघर्ष किए उन्हें ही यहां के मतदाताओं ने चुनकर विधानसभा तक पहुंचाया. संघर्ष की राजनीति में यहां पर समाजवादियों ने अच्छी खासी सफलता पाई लाल हेमेंद्र प्रताप देहाती के बाद 1977 और 2000 में में रामचंद्र केसरी स्वर्गीय गिरवर पांडे तथा 2004, 14 और 19 में भानु प्रताप शाही इस क्षेत्र क्षेत्र से विधायक चुने गए. भवनाथपुर के राजनीति में स्थापित हो चुके भानु प्रताप शाही कि संघर्ष को कौन नहीं जानता. इन्होंने भी जनता के सवाल पर नौजवान संघर्ष मोर्चा के बैनर तले लंबा संघर्ष किया. इस संघर्ष के दौरान उन्हें भी पिता की तरह पुलिस का जुर्म का सामना करना पड़ा. इन परभी नक्सली होने के भी आरोप लगे, अनुसूचित जाति जनजाति एक्ट के तहत फसाया गया, एक दर्जन से ऊपर मुकदमा कर इन्हें राजनीति से रोकने की कोशिश की गई किंतु भवनाथपुर के मतदाताओं इन्हें सर आंखों पर बैठाया 2004 में विधायक चुनाव से जिताया जमीन पर उतारा 14 से लगातार दो बार से विधायक हैं. 2024 के चुनाव में भवनाथपुर विधानसभा चुनाव क्षेत्र की राजनीति किस दिशा में करवट लेगा यह तो वक्त तय करेगा किंतु अभी से जिस हिसाब से भवनाथपुर में राजनीतिक प्रतिस्पर्धा राजनेताओं के बीच दिख रही है इससे यह कहना अन्यथा नहीं होगा कि इस बार भी भवनाथपुर विधानसभा चुनाव क्षेत्र में मुकाबला रोचक होने वाला है.

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भवनाथपुर विधानसभा चुनाव क्षेत्र के राजनीति को ग्लैमर एवं समाजवाद के संघर्ष का स्वरूप के चर्चा के दौरान समाजवादी नेता स्वर्गीय लाल हेमेंद्र प्रताप देहाती के संदर्भ में उनके साथ राजनीति किए बुधन पाल बताते हैं कि 1969 में नगर उंटारी गढ़ परिवार के ग्लैमर की राजनीति को पहली बार चुनौती देते हुए लाल हेमंत प्रताप देहाती संसोपा दल से विधायक बने थे. बतौर बुधन पाल तब लाल हेमंत देहाती की छवि एक ऐसे संघर्षील एवं जुझारू नेता की बनी थी, जिनके संघर्ष के दिनों में भाषण सुनने के लिए दो चार सौ लोगों की भीड़ नुक्कड़ पर देखते हीं देखते लग जाती थी. लाल हेमेंद्र प्रताप देहाती के संदर्भ में और कई प्रकार के खिस्से हैं. बताया जाता है कि उन्हें संघर्ष की काफी कीमत भी चुकानी पड़ी थी,उन्हें पुलिसिया यातना भी दिया गया था पर लोकतंत्र की जीत हुई और भवनाथपुर के मतदाताओं ने जन मानस के लिए संघर्ष करने वाले लाल हेमेंद्र प्रताप देहाती को पहली बार गढ़ परिवार के के शंकर प्रताप देव जो दो बार के विधायक थे, उन्हें राजनीतिक रूप से चुनौती दी. हालांकि लोग बताते हैं कि लाल हेमंत प्रताप देहाती की राजनीति तूफान की तरह भवनाथपुर के जमीन पर आई और 1969 से 72 तक 3 साल विधायक बनने के बाद ऐसी ठंड पड़ गई कि संसदीय राजनीति में दोबारा उन्हें सफलता हांथ नहीं लगी,

परंतु किस्मत भी कोई चीज होती है क्योंकि लाल हेमंत प्रताप देहाती के राजनीतिक जीवन में एक वैसा चमत्कारी पल भी भवनाथपुर विधानसभा क्षेत्र के लोगों को देखने का अवसर मिला,जब 2004 में इस क्षेत्र से नौजवान संघर्ष मोर्चा से विधायक बने भानु प्रताप शाही ने मुकदमा के कारण खुद मंत्री बनने में आए कानूनी बाधा को देखते हुए मधु कूड़ा सरकार में अपनी मंत्री की कुर्सी सुरक्षित रखने के लिए अपने पिता लाल हेमंत प्रताप देहाती को स्वास्थ्य मंत्री बना दिया और जैसे ही जेल से बाहर आए योजना के अनुसार स्वास्थ्य मंत्री की कुर्सी पर बैठ गए.

1990 के बात इस क्षेत्र की राजनीति परिस्थिति में व्यापक बदलाव देखने को मिला. आजीवन  गढ़ परिवार के खिलाफ राजनीति करने वाले गिरवर पांडे को संघर्ष का उपहार मिला और वे 1990 में इस क्षेत्र से विधायक चुने गए. विधायक रहे  और मंत्री भी बने. मुझे याद है 2090 का वह चुनाव जब साधनहीन गिरवर पांडे के पास एक मोटरसाइकिल तक खुद की नहीं थी जिसने वोट दिया उसी ने चंदा दिया और  भवनाथपुर के मतदाताओं ने ही चंदा के सहारे  मामूली चुनावी खर्च किया और चुनाव जीत  दिया.सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि चुनाव जीतने के बाद गिरवर पांडे के पास इतना पैसे नहीं थे कि वे गढ़वा से  विजय जुलूस निकालकर भवनाथपुर विधानसभा चुनाव क्षेत्र में लौटे विधायक का सर्टिफिकेट मिलने के बाद तब कहीं चंदा के सहारे संसाधन जुटाना गया और वे विधायक का सर्टिफिकेट लेकर नगर उंटारी के लिए लौटे. वैसे भी संघर्षील नेता की  इस क्षेत्र के मतदाताओं ने कितना महत्व दिया इसका आकलन स्वर्गीय गिरवर पांडे के निधन के दिन देखने को मिला उनकी अंत्येष्टि राजकीय सम्मान के साथ कराने के अडचन में स्वर्गीय पांडे की मौत के बाद उनके गांव में हजारों लोगों की भीड़ घंटे चिलचिलाती धूप में तब तक जमी रही जब तक उनका राजकीय सम्मान के साथअंत्येष्टि नहीं किया गया. वैसा पलामू प्रमंडल के किसी भी बड़े से बड़े नेता के लिए अब तक देखा व सुना नहीं गया है इससे 20 समझा जा सकता है कि संघर्ष को भवनाथपुर की जनता कितना सम्मान देती है.

बाद के दिनों में इस क्षेत्र की राजनीति का रसूख भी बदला और गढ़ परिवार के लोगों की राजनीति करने की शैली भी, विशेषकर गढ़ परिवार के आनंत प्रताप देव के राजनीति में इट्री के बाद राजनीति पूरी तरह से बदल गई और जन सरोकार को लेकर संघर्ष करने के मामले में अनंत प्रताप देव भी लगातार सक्रिय रहे नतीजा रहा की 2009 के चुनाव में भवनाथपुर की जनता ने उन्हें भी सिर आंखों पर बैठाया तथा यहां तब के मंत्री भानु प्रताप शाही के बंद गाडी के काले शीशे की श्री शाही के विरोधियों ने खूब इस्तेमाल किया, ताकि भानु प्रताप शाही के संघर्षशील छवि पर आंच लगाई जा सके. 2009 का चुनाव परिणाम आपके सामने है.
. दलीय राजनीति से ज्यादा जनता के सवाल पर संघर्ष करने वाले नेता हीं यहां के मतदाताओं की पसंद रहे हैं, इसका आकलन इससे भी किया जा सकता है कि 2005 से पहले 15 वर्षों तक एकीकृत बिहार के लालू राज में यहां से डॉक्टर यासीन अंसारी तथा बसंत प्रसाद यादव जैसे नेताओं को लालटेन के सिंबल पर भी सफलता हाथ नहीं लगी और उन्हें राष्ट्रीय जनता दल के चलती में भी यहां की जनता ने पसंद नहीं कर यह जाता दिया की भवनाथपुर के लोग उसे ही पसंद कते हैं जो उनके सरोकार से जुड़ा रहता है. तात्पर्य यह कि 1969 के बाद से भवनाथपुर विधानसभा चुनाव क्षेत्र में ग्लैमर की राजनीति में जो विराम लगी,वह संघर्ष का स्वरूप ले लिया. लिहाजा जिन जिन नेताओं ने भवनाथपुर के मतदाताओं के लिए संघर्ष किए उन्हें ही यहां के मतदाताओं ने चुनकर विधानसभा तक पहुंचाया. संघर्ष की राजनीति में यहां पर समाजवादियों ने अच्छी खासी सफलता पाई लाल हेमेंद्र प्रताप देहाती के बाद 1977 और 2000 में में रामचंद्र केसरी स्वर्गीय गिरवर पांडे तथा 2004, 14 और 19 में भानु प्रताप शाही इस क्षेत्र क्षेत्र से विधायक चुने गए. भवनाथपुर के राजनीति में स्थापित हो चुके भानु प्रताप शाही कि संघर्ष को कौन नहीं जानता. इन्होंने भी जनता के सवाल पर नौजवान संघर्ष मोर्चा के बैनर तले लंबा संघर्ष किया. इस संघर्ष के दौरान उन्हें भी पिता की तरह पुलिस का जुर्म का सामना करना पड़ा. इन परभी नक्सली होने के भी आरोप लगे, अनुसूचित जाति जनजाति एक्ट के तहत फसाया गया, एक दर्जन से ऊपर मुकदमा कर इन्हें राजनीति से रोकने की कोशिश की गई किंतु भवनाथपुर के मतदाताओं इन्हें सर आंखों पर बैठाया 2004 में विधायक चुनाव से जिताया जमीन पर उतारा 14 से लगातार दो बार से विधायक हैं. 2024 के चुनाव में भवनाथपुर विधानसभा चुनाव क्षेत्र की राजनीति किस दिशा में करवट लेगा यह तो वक्त तय करेगा किंतु अभी से जिस हिसाब से भवनाथपुर में राजनीतिक प्रतिस्पर्धा राजनेताओं के बीच दिख रही है इससे यह कहना अन्यथा नहीं होगा कि इस बार भी भवनाथपुर विधानसभा चुनाव क्षेत्र में मुकाबला रोचक होने वाला है.

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  • Vivekanand Upadhyay

    Location: Garhwa Vivekanand Updhyay is the Chief editor in AapKiKhabar news channel operating from Garhwa.

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