Location: रांची
रांची: झारखंड विधानसभा चुनाव को लेकर एनडीए में सीटों का बंटवारा हो गया। सीटों के बंटवारे की घोषणा के बाद कई राजनीतिक संकेत मिले हैं। जिसको समझना जरूरी है। सहयोगी दलों के बीच सीटों के बंटवारे में चाणक्य की भूमिका असम के मुख्यमंत्री व भाजपा के चुनाव सह प्रभारी हिमंता विश्व सरमा ने निभाई है। आजसू, जनता दल यूनाइटेड और लोजपा को जो सीटें दी गई हैं उससे साफ है कि भाजपा किसी दल के दबाव में नहीं आई। जदयू का दबाव भी काम नहीं आया। जदयू को ही झुकना पड़ा। जमशेदपुर पूर्वी से निर्दलीय विधायक सरयू राय के जदयू में शामिल शामिल होने के बाद सबको यही लगता था कि राय पूर्वी से ही एनडीए के उम्मीदवार होंगे। जदयू यह सीट अपने खाते में लेकर रहेगी। सरयू राय भी इसी रणनीति के तहत जदयू में शामिल हुए थे। जदयू के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा ने जमशेदपुर के कार्यक्रम में घोषणा भी कर दी थी कि सरयू राय पूर्वी से ही लड़ेंगे और एनडीए के उम्मीदवार होंगे। कुछ दिनों पहले तक सरयू राय भी यही कहते रहे कि वह पूर्वी से ही चुनाव लड़ेंगे। 4 अगस्त को सरयू राय जब जदयू में शामिल हुए थे, तो मैंने उसी दिन एक पोस्ट लिखकर यह दावे के साथ कहा था कि सरयू राय कभी पूर्वी जमशेदपुर से उम्मीदवार नहीं हो सकते हैं। राज्यपाल रघुवर दास ऐसा नहीं होने देंगे। बाद के भी दो पोस्ट में भी मैंने लिखा था कि सरयू राय को पश्चिमी जमशेदपुर वापस लौटना होगा। क्योंकि रघुवर दास की केंद्र में अभी भी मजबूत पकड़ है और वह अपनी बात मनवा कर रहेंगे। और जब अधिकृत घोषणा हुई तो यह बात सही निकली। सरयू राय पूर्वी के बदले पश्चिमी से ही लड़ेंगे। सरयू राय के मामले में भाजपा जदयू के दबाव में नहीं आई। तमाम कोशिशें बेकार हुईं। भाजपा ने पूर्वी जमशेदपुर अपने पास रखा। यहां से उम्मीदवार कौन होगा इसका फैसला भी रघुवर दास ही करेंगे। यहां सरयू राय की भी प्रशंसा करनी होगी। एनडीए में शामिल होने के बाद उन्होंने अपना रुख लचीला किया और पूर्वी से चुनाव लड़ने की जिद छोड़ दी। सरयू राय यदि जिद करते तो नुकसान दोनों का होता। गठबंधन टूट भी सकता था। बड़े नेताओं के साथ रिश्ते खराब हो जाते। सरयू राय एक मजे हुए और चतुर राजनीतिज्ञ हैं। उन्होंने नजाकत को समझते हुए अपने कदम पीछे खींच लिए। सरयू राय और रघुवर दास के बीच जारी राजनीतिक प्रतिशोध भी भविष्य में काम हो सकता है। इसे हार जीत के रूप में लेने की जरूरत नहीं है। बल्कि यह फैसला एनडीए के हित में हुआ है। दोनों दलों में टकराव की नौबत नहीं आई। मामला सुलझ गया। इसके पीछे अहम भूमिका हिमंता सरमा ने निभाई। उनके प्रयास से ही सफल हो पाया। जदयू ने भाजपा पर अधिक सीट लेने को लेकर खूब दबाव बनाया लेकिन भाजपा नहीं झुकी। दो सीटों पर ही जदयू को मना लिया। झारखंड में जदयू की जो स्थिति है उसके हिसाब से देखें तो दो सीट भी कम नहीं है। औकात के अनुसार सीट दी गई है। भाजपा ने लोजपा के मंसूबों पर भी पानी फेर दिया। लोजपा भी अधिक सीट चाहती थी, पर भाजपा ने एक सीट देकर मना लिया। इसमें भी हिमंता ने महती भूमिका निभाई है। अब बात आजसू की। आजसू के दबाव में भी भाजपा नहीं आई है। आजसू को सम्मानजनक सीट मिल गई है। 10 से अधिक सीट की हकदार पार्टी नहीं है। गठबंधन धर्म निभाते हुए भाजपा ने आजसू को सम्मान दिया है। मैंने इस मामले में भी बहुत पहले लिखा था कि आजसू को 10 से अधिक सीट नहीं मिलेगी और यही हुआ। आजसू ने यदि दबाव बनाकर ईचागढ़ की सीट बीजेपी से ले ली तो भाजपा ने भी आजसू की पकड़ वाली सीट बड़कागांव अपने पास रख ली। यानी दोनों का हिसाब किताब बराबर हो गया। भाजपा दबाव में नहीं आई। सुदेश महतो को भाजपा की शर्तें माननी पड़ीं। भाजपा आजसू से गठबंधन तोड़ना नहीं चाहती थी इसलिए ईचागढ़ सीट पर उसने समझौता कर लिया। सुदेश महतो के लाख चाहने के बावजूद सिमरिया व चंदनक्यारी भाजपा अपने पास रखने में सफल रही। सीटों का बंटवारा तो हो गया है। लेकिन अभी आजसू और भाजपा के बीच टुंडी का मामला फंसा हुआ है। सुदेश महतो खुद यहां से लड़ना चाहते हैं। इसलिए वह टुंडी सीट मांग रहे हैं। भाजपा देने को तैयार नहीं है। यहां दूसरे फेज में चुनाव होना है। इसलिए हिमंता ने यह कहा है कि दोनों दलों के बीच आगे एक दो सीट इधर-उधर हो सकती है। इस गठबंधन का संकेत साफ है कि भाजपा ने सहयोगी दलों को सीट भी दे दी और दबाव में भी नहीं आई। इसके के पीछे चाणक्य की भूमिका हिमंनता सरमा ने निभाई है। एनडीए की एकता का लाभ चुनाव में जरूर मिलेगा