पलामू प्रमंडल में अहंकार आत्मविश्वास और टिकट बंटवारे में गड़बड़ी के कारण भाजपा को नहीं मिली अपेक्षित सफलता

Location: रांची

रांची: पलामू प्रमंडल में भाजपा की अच्छी पैठ रही है. भाजपा यहां हमेशा अच्छा प्रदर्शन करती रही है. यहां का राजनीतिक व सामाजिक समीकरण भाजपा के पक्ष में ही रहता है. इस बार भी ऐसी उम्मीद थी कि भाजपा अच्छा प्रदर्शन करेगी. लेकिन परिणाम अपेक्षा के अनुरूप नहीं रहे. भाजपा 9 में से सिर्फ चार सीट ही जीत सकी. जबकि 2019 में सरकार से नाराजगी के बावजूद भाजपा को पांच सीटें मिली थीं. इस बार माहौल अनुकूल था, फिर भी परिणाम अच्छा नहीं रहा. फायर ब्रांड व तेज-तर्रार नेता भानु प्रताप शाही भवनाथपुर से हार गए. पलामू में मोदी से लेकर योगी तक की सभा हुई. बंटेंगे तो कटेंगे और एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे का भी नारा भी खूब चला.
    पलामू प्रमंडल में हार के लिए अहंकार, अति आत्मविश्वास और टिकट वितरण में गड़बड़ी को जिम्मेदार माना जा रहा है. पलामू प्रमंडल में छह सीट जनरल, दो एससी व एक एसटी के लिए आरक्षित है. हार के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार टिकट वितरण में गड़बड़ी को माना जा रहा है. पार्टी के कर्णधारों ने ग्राउंड रिपोर्ट व कार्यकर्ताओं की भावना के विपरीत मनमानी तरीके से टिकट का बंटवारा किया. विश्रामपुर में रामंचद्र चंद्रवंशी के खिलाफ काफी आक्रोश था. आक्रोश पहले से दिख रहा था. ग्राउंड रिपोर्ट इनके खिलाफ थी. कार्यकर्ताओं ने भी टिकट दिए जाने का विरोध किया था. फिर भी पार्टी ने 83 साल के चंद्रवंशी को तीसरी बार उम्मीदवार बनाया. चंद्रवंशी के खिलाफ आरोप है कि क्षेत्र में आना-जाना कम करते हैं. किसी को कुछ भी बोल देते हैं. बाप के बदले बेटा सबकुछ संभालता है. क्षेत्र में इनका कई शिक्षण संस्थान हैं. जनता से अधिक ध्यान शिक्षण संस्थानों के विकास पर भी दिया जाता है. विश्रामपुर क्षेत्र में नाराजगी का एक बड़ा कारण शिक्षण संस्थान ही है. लोगों का कहना है कि राजनीति के प्रभाव की वजह से ही यह व्यवसाय फल-फूल रहा है. चंद्रवंशी के खिलाफ भारी इंटी इनकंबेंसी के बाद भी टिकट दिया गया. इसलिए भाजपा हार गई. यदि किसी दूसरे को टिकट मिलता तो परिणाम अनुकूल रहता. क्योंकि क्षेत्र के लोगों में भाजपा के खिलाफ नहीं बल्कि चंद्रवंशी से नाराजगी थी. क्षेत्र में भ्रमण के दौरान मैंने यह देखा था कि लोग भाजपा के खिलाफ नहीं चंद्रवंशी के खिलाफ आक्रोशित हैं. तरह-तरह के आरोप उनके खिलाफ सुनने को मिले.
    हुसैनाबाद में कमलेश सिंह का भारी विरोध था. कामकाज व क्षेत्र में नहीं दिखने की वजह से नाराजगी थी. जनता पहले से ही हराने के लिए तैयारी बैठी थी. यह सब जमीन पर दिख रहा था. फिर भी पार्टी के बड़े नेताओं ने कमलेश सिंह को एनसीपी से भाजपा में शामिल कराकर टिकट थमा दिया. कमलेश सिंह को टिकट मिलते ही भाजपा के खिलाफ आग और भड़क गई. टिकट वितरण के पहले इस बार क्षेत्र में कमल खिलने की खूब चर्चा थी. कमलेश सिंह के बदले किसी को उम्मीदवार बनाया गया होता तो ऐसी दुर्गति नहीं होती. कमलेश सिंह के खिलाफ भाजपा के बागी मैदान में उतर गए और उन्होंने हरा दिया. कमलेश सिंह के विरोध का सीधा लाभ राजद उम्मीदवार संजय यादव को मिला.
     छतरपुर में विधायक पुष्पा देवी व इनके पति मनोज भुइंया का भी भारी विरोध था. भाजपाइयों ने टिकट के मामले में पहले ही आगाह कर दिया था. रिपोर्ट भी खराब थी. फिर भी टिकट मिल गया. पुष्पा देवी चुनाव हार गईं. यहां से लगातार दो बार विधायक बनने का रिकार्ड भी सिर्फ एक बार ही बना है. छतरपुर-पाटन भाजपा का मजबूत गढ़ है. पुष्पा देवी को लेकर भारी विरोध के बावजूद भाजपा 700 वोट से हारी. इससे समझा जा सकता है कि यहां पार्टी का जनाधार कैसा है. पुष्पा के बदले किसी दूसरे को टिकट मिला रहता तो भाजपा यहां से नहीं हारती.
     डालटनगंज विधायक आलोक चौरसिया का भी भारी विरोध था. दो बार के विधायक चौरसिया का जनता से संपर्क नहीं है. विकास के मामले में भी फिसड्डी हैं. डालटनगंज में चौरसिया अपनी वजह से नहीं बल्कि भाजपा की वजह से जीते. जीत का अंतर मात्र 890 वोट रहा. शहर के लोगों ने भाजपा के नाम पर वोट नहीं दिया होता तो हार तय थी. लोगों ने मन मारकर भाजपा व मोदी के नाम पर वोट दिया है. जबकि पलामू में भाजपा के लिए सबसे मजबूत सीट डालटनगंज ही मानी जाती है. कद्दावर व लोकप्रिय नेता इंदर सिंह नामधारी के बेटे दिलीप सिंह नामधारी के मैदान में रहने के बाद भी लोगों ने भाजपा का साथ दिया. यहां की जीत चौरसिया की नहीं भाजपा की है.
     भवनाथपुर में पार्टी के फायरब्रांड व तेज-तर्रार नेता भानु प्रताप शाही भी हार गए. शाही आत्मविश्वास के शिकार हो गए. दो बार से लगातार जीत रहे थे. उन्हें ऐसा लगने लगा था कि अब कोई हरा नहीं सकता है. प्रदेश स्तर के नेता हो गए थे. भानु की यही भूल हार का कारण बनी. जनता से कनेक्ट भी कम हो गया था. भानु अपने गढ़ भवनाथपुर क्षेत्र में ही झामुमो प्रत्याशी अनंत प्रताप देव को नहीं रोक पाए. उनकी हार की कहानी भवनाथपुर ने ही लिख दी. यहां से वह करीब दो सौ वोट से ही लीड ले सके. दो चुनाव में हार के बाद भी अनंत प्रताप देव जनता से जुड़े रहे. इसका लाभ भी उन्हें मिला. अनंत सरल व सीधे स्वभाव के हैं.
  लातेहार में प्रकाश राम भी किसी तरह चार सौ वोट से जीत सके. मनिका एसटी सीट भाजपा फिर हार गई. आदिवासियों ने भाजपा का साथ नहीं दिया. जबकि इस बार उम्मीदवार भी बदल दिया गया था. पांकी में शशिभूषण मेहता की जीत में कांग्रेस व मुस्लिम मतदाताओं ने अहम भूमिका निभाई. कांग्रेस ने यदि पूर्व विधायक बिट्टू सिंह को टिकट दिया होता तो मेहता की हार भी तय थी. बिट्टू सिंह निर्दलीय लड़े. 66 हजार से अधिक वोट लाया और दूसरे स्थान पर रहे. कांग्रेस प्रत्याशी लाल सूरज तीसरे स्थान पर रहे. बिट्टू सिंह का खेल निर्दलीय मुमताज ने बिगाड़ दिया. मुमताज को 23 हजार वोट मिला. यदि यह वोट बिट्टू सिंह की ओर शिफ्ट कर जाता तो फिर बिट्टू की जीत तय हो जाती है.
गढ़वा में विकास पर कमल भारी
गढ़वा-पलामू में भाजपा के पक्ष कैसा मौहाल था. इसको समझने के लिए गढ़वा का परिणाम पर गौर करने की जरूरत है. मंत्री मिथिलेश ठाकुर ने यहां विकास की नई गाथा लिखी. विकास की चर्चा हर जुबान पर मिल जाएगी. लेकिन विकास पर यहां बदलाव भारी पड़ा. मंत्री हार गए व कमल खिल गया. गढ़वा में ध्रुवीकरण भी देखने को मिला. बंटेंगे तो कटेंगे व एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे का असर दिखा. गढ़वा में मोदी की हुई सभा के बाद माहौल पूरी तरह बदल गया. चुनाव मैनेजमेंट के मामले में भाजपा प्रत्याशी सत्येंद्र तिवारी कहीं नजर नहीं आए. भाजपा सहित लगभग सभी दलों के नेता झामुमो में शामिल हो चुके थे. लेकिन परिणाम भाजपा के पक्ष में रहा. मिथिलेश ठाकुर की हार व भाजपा की जीत में ध्रुवीकरण की राजनीति ने अहम भूमिका निभाई.
पलामू प्रमंडल में कुछ सीटों पर भाजपा की हार की मुख्य वज टिकट वितरण में गड़बड़ी, अधिक आत्मविश्वास व अहंकार ही माना जा रहा है. क्योंकि मोदी व योगी की सभा के बाद ही पार्टी को बहुत लाभ नहीं मिला. अगर कार्यकर्ताओं की भावनाओं व ग्राउंड रिपोर्ट पर काम होता तो परिणाम अलग दिखता.

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  • Sunil Singh

    Sunil Singh is Reporter at Aapki khabar from Ranchi, Jharkhand.

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