Location: Garhwa
चाय की चुस्की
गढ़वा नगर परिषद का मतलब सॉलिड विकास है।क्योंकि परिषद ने एक बार फिर साबित कर दिया कि वह ‘विकास’ की दिशा में सबसे आगे है। शहर में नालियों का ऐसा जाल बिछाया गया है कि लोग अब इन्हें लांघते-लांघते एथलीट बन गए हैं।
सड़कें तो इतनी “स्मूद” हैं कि गाड़ियों के झटकों से लोगों की मुफ्त में हड्डियों का इलाज हो जाता है। और यदि आप सड़कों के गड्ढों से बचना चाहते हैं, तो आपके पास हेलीकॉप्टर ही एकमात्र विकल्प बचता है। विशेष कर पेयजल आपूर्ति के नाम पर गढ़वा शहर की गलियों में जो पाइपलाइन बिछाई गई हैं वह तो इतनी स्मूथ है कि उस पर बैठकर चौपाल जैसा सुकून महसूस किया जा सकता है।
शहर की सफाई व्यवस्था भी इतनी अद्भुत है कि कचरा प्रबंधन का नया ‘मॉडल’ पूरे देश में लागू करने की सोच जा रही है। कचरा इस तरह बिखरा हुआ है कि अब लोगों ने इसे कला का रूप मान लिया है। क्योंकि एक बंदर जो नौ हाथ चढ़ता है और सात हाथ नीचे उतर जाता है की पहेली की तरह शहर में सफाई के नाम पर जो कचरा उठाए जाते हैं । मोहल्ले के आसपास के नदियों के किनारे ही फेंक दिया जा रहा है ,जो अपने आप में अद्भुत है।
पानी की सप्लाई में भी नगर परिषद ने अपनी ‘मास्टरस्ट्रोक’ रणनीति अपनाई है। पानी की इतनी किल्लत है कि लोग अब ‘रेन डांस’ करते हुए जल संरक्षण के नए-नए तरीके सीख रहे हैं।
विद्युत आपूर्ति व्यवस्था तो कमाल का है लाइन कटा मतलब समझ जाईए कहीं ना कहीं ट्रांसफार्मर में फॉल्ट आया, तार टूटकर गिरा और इससे बचे तो बिजली विभाग यह कह कर खुद को किनारे कर लेता है कि अभी मरम्मति का काम चल रहा है । यह बात दिगर है कि मरम्मति के बाद भी जर्जर तार लटकती पोल एवं हुक के सहारे बिजली उपभोक्ता की आपूर्ति चारों ओर वर्षों से दीख रही है।
नगर परिषद के अधिकारीगण अपने-अपने केबिन में बैठकर इन सभी समस्याओं का ‘डीप एनालिसिस’ करते रहते हैं, और ‘समाधान’ खोजने में जुटे रहते हैं। जब तक समाधान मिलता है, तब तक शहर की जनता का धैर्य और सहनशीलता नए आयाम छू चुकी होती है।
इस तरह गढ़वा नगर परिषद ने यह सिद्ध कर दिया है कि ‘कागजी शेर’ कैसे होते हैं और विकास के कितने नए-नए मापदंड हो सकते हैं।
जनता की उम्मीदें और समस्याएं एक ओर, और नगर परिषद की योजनाएं दूसरी ओर, दोनों के बीच की दूरी बस बढ़ती ही जा रही है।