Location: Garhwa
गढ़वा जिले के मेराल थाना क्षेत्र के दुनूखांड़ गांव में अवैध तरीके से बालू परिवहन के दौरान पुलिस द्वारा बालू लदे ट्रैक्टर को जप्त कर थाना लाने की कोशिश में शुक्रवार की देर रात्रि भारी फजीहत हुई।क्योंकि गश्ती दल में शामिल पुलिस वालों को ग्रामीणों ने न केवल विरोध किया, बल्कि ट्रैक्टर को छुड़ाकर पुलिस वाले को दुम दबाकर भागने को मजबूर कर दिया।
यह घटना मेराल पुलिस के लिए चिंता का विषय है क्योंकि जिस पुलिस के हाथ में कानून व्यवस्था को व्यवस्थित रखने के लिए डंडा थम्हाया गया है। उसी पुलिस को गांव वालों के द्वारा के खदेड़ दिया जाना कोई सामान्य सी बात नहीं है। पर इस पर भी गौर करने की जरूरत है कि आखिर ऐसी स्थिति आई ही क्यों ?
इसके मूल में गढ़वा पुलिस की बालू माफिया के साथ सांठ- गांठ को ले मिली प्रसिद्धि ही कारण है। क्योंकि यह पहली घटना नहीं है ,ऐसी घटना बार-बार घटती है ,माझिआंव में भवनाथपुर , में भी ऐसी घटना घटी है। आम चर्चा है की पुलिस से साथ सांठगांठ कर बालू माफिया समान्य दिनों की ही तरह 10 जून से एनजीटी के रोक लगाई जाने के बावजूद बदस्तूर नदियों से बालू उठाव में सक्रिय है। भले ही इसे लेकर गढ़वा के उपायुक्त के द्वारा बैठक कर जिले के अंचल पदाधिकारी तथा थाना प्रभारी को एनजीटी के बालू पर रोक को सख्ती से पालन करने का निर्देश दिया जा चुका है।
वैसे भी गढ़वा पुलिस की पहचान बन चुकी है कि पुलिस वालों की बालू माफिया पर निगाह इसलिए नहीं रखते हैं कि अवैध कारोबार को रोका जाए। बल्कि इसलिए रहती है की इस अवैध कारोबार से पुलिस वाले भी मनमानी राशि वसुली कर सकें। चुकी बालू माफिया को पुलिस वालों को भी संरक्षण प्राप्त है ऐसे में पुलिस बालू के कारोबार में अंतरलिप्त बालू माफिया का एक छात्र राज्य कायम रहे, इसमें किसी दूसरे की ईंट्री नहीं हो ,इस दिशा में सक्रिय होने के क्रम में कुछ ट्रैक्टरों को जप्त करने का मामला सामने आता है।
मेराल के दुनूखांड़ में घटी घटना संभवत: इसी की परिणति है। वैसे भी पुलिस का गश्ती दल उन्हीं इलाके में ज्यादा सक्रिय दिखती है, जहां पर बालू जैसे अवैध कारोबार की गुंजाइश रहती है ताकि काली कमाई में उनकी शेयर में गड़बड़ी न हो जाए । जिस दिन शुक्रवार की रात्रि ग्रामीणों के द्वारा पुलिस को खदेड़े जाने की घटना घाटी है, उस दिन पुलिस के गश्ती दल का जो पुलिस का अधिकारी नेतृत्व कर रहे थे वे तसिली के लिए पूरी तरह से बदनाम है। उनके संदर्भ में आम चर्चा है कि उनकी सक्रियता सिर्फ किसी भी प्रकार से खोंट निकाल कर अवैध वसूली में ही रहती है। विशेषकर बालू का कारोबार हो या सड़क पर गोवंश तस्करी का। इस पर उनकी निगाह रहती है। लिहाजा ऐसे पुलिस कर्मियों की कार्यशैली को लेकर भी पुलिस विभाग को आत्म मंथन करने की जरूरत है ,तभी दुनूखांड़ जैसी घटना कैसे घटी, इसे समझा जा सकता है । जिसमें शुक्रवार की देर रात्रि गांव वालों ने पुलिस के गश्ती दल से बालू से लद्दे ट्रैक्टर को
न केवल वापस करा लिया, बल्कि पुलिस वालों को खदेड़कर भगा दिया । दुनूखांड़ के मामले में पुलिस विभाग प्राथमिक दर्ज कर ग्रामीणों को परेशान तो कर सकती हैं ,पर अपनी कार्य प्रणाली में यदि सुधार नहीं लाई तो दुनूखांड़ जैसी घटना पर नियंत्रण पाना पुलिस के लिए आसान नहीं रहेगा। गढ़वा जिले के पुलिस के आला अधिकारियों को समय रहते इस पर ध्यान देने की जरूरत है।