Location: रांची
रांची- विधानसभा चुनाव में आजसू पार्टी को करारी शिकस्त मिली. एनडीए गठबंधन के तहत आजसू ने दस सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. इनमें से सिर्फ एक सीट मांडू में सफलता मिली. तिवारी महतो किसी तरह 231 वोटों से जीत सके. सिल्ली में खुद पार्टी सुप्रीमो सुदेश महतो हार गए. आजसू ने हार की समीक्षा के लिए रविवार को बैठक बुलाई थी. हार के कारणों पर मंथन हुआ. अपनी कमजोरी पर कम और सहयोगी दल भाजपा की कमजोरियों पर अधिक चर्चा हुई. हार का ठीकरा भाजपा के माथे पर फोड़ने की कोशिश की गई. भाजपा पर आरोप लगाने से दोनों दलों के रिश्ते में भी दरार ही पड़ेगी.
बैठक के बाद सुदेश महतो ने हार के जो कारण बताए उस पर गौर करने की जरूरत है. सुदेश ने कहा कि भाजपा के साथ सीटों के तालमेल में देरी हुई, इस वजह से उम्मीदवारों के चयन में भी देर हुई, चुनाव में स्थानीय मुद्दे नहीं उठाए गए, संयुक्त सभा नहीं हुई. समन्वय की कमी दिखी. एनडीए की ओर से जो मुद्दे उठाए गए जनता ने उसे स्वीकारा नहीं. इंडी गठबंधन ने जातीय ध्रुवीकरण किया. चुनाव से ठीक पहले मतदाताओं को लुभाने के लिए मंईयां सम्मान योजना सहित कई लोक लुभावन घोषणाएं की. इन सब कारणों से परिणाम प्रभावित हुआ. एनडीए को हार का सामना करना पड़ा.
सुदेश महतो ने हार के जो कारण गिनाए उसे खारिज नहीं किया जा सकता है. लोकलुभावन घोषणाओं ने चुनाव को प्रभावित किया. हेमंत सोरेन सरकार की वापसी में भूमिका निभाई. लेकिन आजसू ने हार के कारणों में जयराम महतो की पार्टी झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा के प्रदर्शन पर प्रकाश नहीं डाला. ऐसा नहीं है कि बैठक में इस गंभीर मुद्दे पर चर्चा नहीं हुई होगी. हो सकता है कि एक खास रणनीति के तहत आजसू जयराम महतो की पार्टी को महत्व नहीं दे रही है. क्योंकि ऐसा करने का मतलब साफ है कि सार्वजनिक रूप से आजसू ने झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा के अपनी जाति व बेस वोट बैंक पर प्रभाव मान लिया. सुदेश महतो चतुर राजनीतिज्ञ हैं. इसलिए जयराम महतो की अनदेखी कर रहे हैं. यह भविष्य की राजनीतिक का एक हिस्सा है. उनको महत्व देने का मतलब है अपना नुकसान. लेकिन नजरअंदाज करना भी तो भारी पड़ रहा है. आजसू की लुटिया जयराम महतो ने डूबा दी है.
चुनाव में आजसू की दुगर्ति का कारण तो जयराम महतो व उनकी पार्टी ही है. आजसू का प्रभाव क्षेत्र कुर्मी बहुल इलाका ही रहा है. गठबंधन के तहत भाजपा ने आजसू को कुर्मी बहुल इलाके की सभी सीटें दी थी. आजसू ने इन सीटों की मांग भी की थी. जयराम महतो की पार्टी ने आजसू का सारा खेल बिगाड़ दिया. कुर्मी वोटों में जबर्दस्त सेंधमारी की. आजसू को हाशिये पर ला दिया. जयराम महतो ने 70 सीटों पर उम्मीदवार खड़े कर एनडीए का खेल बिगाड़ दिया. जबकि इससे इंडिया गठबंधन को लाभ पहुंचा.
आजसू को जयराम महतो के उभार पर मंथन करते हुए उनकी काट की राजनीति शुरू करनी चाहिए. प्रभाव पर प्रर्दा डालने से मामला और बिगड़ेगा. आनेवाले दिनों में और नुकसान होगा. क्योंकि हार के बाद जहां आजसू का मनोबल गिरा है, वहीं जयराम महतो व उनके समर्थकों का मनोबल बढ़ा है. जयराम महतो विधायक बन चुके हैं. उनको ताकत मिल गई है. इसलिए उनकी गाड़ी की रफ्तार तेज हो गई है. रफ्तार पर ब्रेक नहीं लगा तो आजसू की राह कठिन हो जाएगी. आने वाले समय में भाजपा भी अब आजसू को अधिक महत्व नहीं देगी. भाजपा को यह अहसास हो गया है कि उसने यदि जयराम महतो को महत्व दिया होता तो आज ऐसे दिन नहीं देखने पड़ते. आजसू पर आत्मनिर्भरता की वजह से भाजपा को भी भारी नुकसान हुआ है. आजसू के भरोसे ही भाजपा ने कुर्मी नेताओं को आगे नहीं बढ़ाया. चुनाव में भाजपा ने अपने दल के कुर्मी नेताओं को तरजीह नहीं दी. अब परिणाम सामने है.
आजसू व सुदेश महतो की चुनौती बढ़ गई है. आजसू पर परिवारवाद का आरोप लग रहा है. पार्टी में नए व ऊजर्वान लोगों की एंट्री नहीं हो रही है. पुराने लोग ही पार्टी चला रहे हैं. इसलिए धार कमजोर हो गई है. युवाओं की पसंद की पार्टी आजसू से युवा कट गए हैं. युवा अब जयराम महतो को पंसद कर रहे हैं. जयराम जिस स्टाइल में राजनीति करते हैं उसे युवा पसंद कर रहे हैं. आजसू को कुर्मी जाति ने ही कमजोर कर दिया है. इस जाति से अब नया नेतृत्व उभर रहा है. कई युवा चेहरे सामने आ चुके हैं. आजसू को अब नई रणनीति के साथ आगे बढ़ना होगा.
लोकसभा चुनाव में जयराम महतो की पार्टी के प्रदर्शन से सीख लेते हुए आजसू ने विधानसभा चुनाव में रणनीति बनाई होती तो शायद ऐसी स्थिति नहीं होती है. जयराम के प्रभाव को आजसू व भाजपा ने पूरी तरह नजर अंदाज किया. महत्व ही नहीं दिया. जबकि सभी जान रहे थे कि जयराम महतो कमाल दिखाएंगे. नेताओं को यह कैसे नहीं दिख रहा था वही जानें.