Location: रांची
रांची: विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा की सूची जारी हो गई। पार्टी ने 68 सीटों में से 66 उम्मीदवारों की घोषणा कर दी। बरहेट और टुंडी से उम्मीदवार की घोषणा नहीं की गई है। पहली सूची में ही सारे नाम सामने आ गए। सूची देखकर यह कहा जा सकता है कि भाजपा ने काफी होमवर्क करने के बाद उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। पार्टी ने अधिकांश पुराने व अनुभवी लोगों पर ही भरोसा जताया है। यह कहा जा सकता है कि झारखंड बीजेपी के चुनाव प्रभारी शिवराज सिंह चौहान, सह प्रभारी असम के मुख्यमंत्री हिमंता विश्व सरमा और प्रभारी लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने फाइनल मैच से पहले बहुत तरीके से मैदान सजा दिया है। अब मैदान पर बैट्समैन को जीत दिलानी है। और लक्ष्य 41 के स्कोर को पार कर पार्टी को बहुमत दिलाना है। टिकट बंटवारे में क्षेत्रीय व जातीय संतुलन के साथ-साथ महिलाओं की भागीदारी पर भी ध्यान दिया गया है। दमदार और अपने-अपने क्षेत्र में पकड़ व पहचान रखने वालों पर पार्टी ने भरोसा जताया है। 12 सितंबर को मैंने एक पोस्ट में लिखा था कि यदि शिवराज सिंह चौहान, हिमंता विश्व सरमा और लक्ष्मीकांत वाजपेयी की टीम ने सही तरीके से उम्मीदवारों का चयन किया तो जीत की संभावना अधिक रहेगी। यह भी लिखा था कि इस बार लक्ष्मी की कृपा से किसी को टिकट नहीं मिलेगा और न ही नेताओं की परिक्रमा करने से। क्षेत्र में जिनकी हैसियत व पकड़ होगी टिकट उसी को मिलेगा। सूची देखकर यह साफ हो गया कि मैंने जो सोचा था, जो लिखा था टिकटों का बंटवारा ठीक इसी तरह से हुआ। टिकट बंटवारे में किसी की नहीं चली। प्रभारियों की अनुभवी टीम ने फीडबैक और जीत की संभावना के आधार पर टिकटों का बंटवारा किया है। सूची में परिवारवाद को जरूर बढ़ावा मिला है। इस पर विवाद और चर्चा हो सकती है। लेकिन पार्टी ने एक रणनीति के तहत ही बड़े नेताओं के सगे-संबंधियों को टिकट दिया है। परिवारवाद के आरोप से अधिक जीत की संभावना देखी गई है। बड़े नेताओं का ईगो न टकराया। गुटबाजी न हो। एक दूसरे की टांग न खींचे और एकजुट रहें इसी उद्देश्य से परिवार के लोगों को टिकट दिया गया है। सभी बड़े नेता अब अपने सगे संबंधियों को जीत दिलाने में जोर लगाएंगे। क्योंकि उनकी प्रतिष्ठा भी इससे जुड़ी हुई है। पार्टी ने खास रणनीति के तहत ही पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा, राज्यपाल रघुवर दास की बहू पूर्णिमा साहू पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन के बेटे बाबूलाल सोरेन, मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा, धनबाद सांसद ढुल्लू महतो के भाई शत्रुघ्न महतो शिबू सोरेन परिवार की बड़ी बहू सीता सोरेन, पूर्व विधायक स्वर्गीय उपेंद्र दास के बेटे उज्जवल दास, सिंदरी के बीमार विधायक इंद्रजीत महतो की पत्नी तारा देवी आदि को इसलिए टिकट दिया गया है कि इनमें जीत की संभावना अधिक है। इसीलिए पार्टी ने ऐसे उम्मीदवारों पर दांव लगाया है।कल्पना सोरेन की घेराबंदी, महिला के बदले महिला उम्मीदवार सूची में चौंकाने वाला नाम गांडेय से मुनिया देवी को टिकट दिया जाना है। पार्टी ने सोच समझकर यहां हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन की घेराबंदी करने की कोशिश की है। लोहे को लोहा से काटने की तैयारी है। यानी महिला उम्मीदवार के बदले महिला उम्मीदवार। विधानसभा उप चुनाव में महिला के नाम पर कल्पना सोरेन को महिलाओं का अधिक समर्थन मिला था। भाजपा की हार का कारण महिला वोटर थीं। इसीलिए पार्टी ने इस बार महिला उम्मीदवार उतारा है। मुनिया देवी गिरिडीह जिला परिषद अध्यक्ष हैं। स्थानीय हैं। क्षेत्र में मजबूत पकड़ है, और कोइरी जाति से आती हैं। मुनिया देवी के पति कोलेश्वर वर्मा जमीन व रियल एस्टेट के कारोबारी हैं। पैसे से भी मजबूत हैं। पार्टी यहां से जेपी वर्मा को लड़ना चाहती थी, इसलिए उनको भाजपा में वापस लिया गया था। लेकिन मजबूत महिला उम्मीदवार मुनिया देवी की बात आई तो जेपी वर्मा के बदले मुनिया देवी पर ही पार्टी ने दांव लगाया। अब देखना है मुनिया देवी कल्पना सोरेन को कितना टक्कर दे पाती हैं। रांची में सीपी सिंह पर ही भरोसा रांची में पार्टी ने फिर से सीपी सिंह पर ही भरोसा किया है। रांची और हटिया को लेकर जो चर्चा थी उसे पर विराम लगाते हुए पार्टी ने नवीन जायसवाल को हटिया और रांची से सीपी सिंह को मौका दिया है। रांची का फैसला अंतिम में हुआ। सारे नाम पर विचार करने के बाद पार्टी ने नए नाम पर जोखिम लेना मुनासिब नहीं समझा। नए लोगों को टिकट देने पर विरोध हो सकता था, इसलिए सीपी सिंह को ही सातवीं बार मौका दिया गया। रांची जैसी हाई प्रोफाइल सीट पर पार्टी ने कोई जोखिम नहीं लिया। यहां कई लोगों के सपने टूट गए। उम्मीदों पर वज्रपात हो गया। पलामू में विश्रामपुर विधायक रामचंद्र चंद्रवंशी और डाल्टनगंज विधायक आलोक चौरसिया के खिलाफ कुछ नाराजगी जरूर है। लेकिन यह भी सच है कि इन दोनों क्षेत्रों में पार्टी के पास कोई मजबूत विकल्प नहीं था। दोनों अत्यंत पिछड़ी जाति से आते हैं। इसलिए पार्टी ने इन्हें फिर से मौका दिया है। चंद्रवंशी अपने बेटे को टिकट दिलाना चाहते थे लेकिन पार्टी ने इनकार कर दिया। यह सही रणनीति थी। बेटे को अगर टिकट मिलता तो भाजपा यहां बुरी तरह हार जाती। अभी भी वहां जितने प्रत्याशी मैदान में आएंगे उन सब का मुकाबला चंद्रवंशी के साथ ही होगा। चंद्रवंशी की पकड़ मजबूत है। पैसे खर्च करने के मामले में भी चंद्रवंशी सबसे आगे रहेंगे। गढ़वा पलामू जिले में चंद्रवंशी समाज अच्छी संख्या में है और यह बीजेपी का सपोर्टर हैं, इसलिए इस जाति से टिकट देना पार्टी के लिए जरूरी था। पार्टी ने चंद्रवंशी और आलोक चौरसिया को सोच समझ कर ही फिर से मौका दिया है। गढ़वा में भी सत्येंद्र तिवारी से मजबूत कोई उम्मीदवार भाजपा के पास नहीं था। मंत्री मिथिलेश ठाकुर और निर्दलीय चुनाव लड़ रहे गिरिनाथ सिंह को सत्येंद्र तिवारी ही टक्कर दे सकते हैं। भाजपा ने जहां तीन विधायकों का टिकट काट दिया है वहीं पहली बार 12 महिलाओं को टिकट दिया गया है। बरहेट से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ दमदार उम्मीदवार की तलाश है तो टुंडी का मामला अभी भी आजसू के साथ फंसा हुआ है।