
रांची: पलामू प्रमंडल सहित राज्य के कुछ अन्य जिलों में क्षेत्रीय भाषा को लेकर उठे विवाद पर जल्द ही विराम लगेगा। सरकार ने विवाद समाप्त करने को लेकर पहल की है। शिक्षा विभाग इस दिशा में काम कर रहा है। शिक्षक नियुक्ति परीक्षा को लेकर शिक्षा विभाग की ओर से क्षेत्रीय भाषा की जो सूची तैयार की गई थी उसको लेकर विवाद उत्पन्न हो गया था। पलामू प्रमंडल में क्षेत्रीय भाषा की सूची में भोजपुरी और मगही को शामिल नहीं किया गया था। इसके बदले नागपुरी और कुडूख को शामिल किया गया था। इसी तरह गोड्डा व खूंटी सहित अन्य जिलों में क्षेत्रीय भाषा की सूची में गड़बड़ी थी। शिक्षा विभाग की ओर परीक्षा को लेकर जब क्षेत्रीय भाषा की सूची (ड्राफ्ट ) जारी की गई तो विरोध शुरू हो गया। पलामू प्रमंडल में सबसे पहले भाजपा के पूर्व विधायक भानु प्रताप शाही ने इस मुद्दे को उठाया। वह मुखर होकर सामने आए। इसके बाद भाजपा ने इस मुद्दे को जोरशोर से उठाया। राज्यपाल को ज्ञापन भी दिया।पलामू प्रमंडल में मगही और भोजपुरी को क्षेत्रीय भाषा के रूप में शामिल नहीं किए जाने पर वित्त मंत्री राधाकृष्ण किशोर ने मुख्यमंत्री को चिट्ठी लिखी। इसके तुरंत बाद भवनाथपुर विधायक अनंत प्रताप देव ने भी मुख्यमंत्री से मुलाकात कर उन्हें एक ज्ञापन देते हुए भाषा विवाद का निपटारा करने और मगही और भोजपुरी को शामिल करने की मांग की । सरकार में शामिल दलों को भी ऐसा लगा कि गड़बड़ी हुई है। यह बड़ा मुद्दा बन सकता है। इसलिए कांग्रेस, झामुमो और राष्ट्रीय जनता दल ने भी विरोध जताया। सरकार तक बात पहुंची। नतीजा यह निकला कि सरकार समय रहते जाग गई। शिक्षा विभाग ने यह स्पष्ट किया कि क्षेत्रीय भाषा को लेकर अभी फाइनल सूची जारी नहीं की गई है। सभी जिला शिक्षा अधीक्षकों से क्षेत्रीय भाषा को लेकर रिपोर्ट मांगी गई है। कई जिलों से रिपोर्ट शिक्षा विभाग को मिल भी गई है। गढ़वा और पलामू से जो रिपोर्ट आई है उसमें भोजपुरी और मगही को क्षेत्रीय भाषा के रूप में शामिल करने की अनुशंसा की गई है। इस मामले में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी पहल की है। वह भी चाहते हैं कि क्षेत्रीय भाषा को लेकर जिलों में विवाद न हो। जहां जो भाषा बोली जाती है उसे सूची में शामिल किया जाए। बहरहाल इस मामले का अब पटाक्षेप हो जाएगा। भाजपा ने इस मामले में विपक्ष की भूमिका सही ढंग से निभाई। यदि भानु प्रताप शाही सहित भारतीय जनता पार्टी ने इस मामले को नहीं उठाया होता तो शायद यह मामला अभी और लंबा चलता। सरकार की भी तारीफ की जानी चाहिए कि उसने भी समय रहते गलती सुधारने का प्रयास किया। पिछले हफ्ते मैंने इस संबंध में एक पोस्ट लिखा था। जिसमें कहा था कि सरकार ने समय रहते यदि विवाद समाप्त करने को लेकर पहल नहीं की तो फिर जयराम महतो जैसा कोई नया नेता पैदा होगा। भाषा विवाद को लेकर राज्य में एक बार फिर बड़ा आंदोलन खड़ा हो सकता है। जयराम महतो भाषा विवाद से उपजे आंदोलन से नेता बने और अब विधायक भी हैं। लेकिन अच्छी बात है कि सरकार ने समय रहते कदम उठाया और विवाद को गंभीरता से लेते हुए सुलझाने की दिशा में कार्रवाई की।