Location: Garhwa
चाय की चुस्की
लोकतंत्र की यही खूबसूरती है की सत्ता पक्ष हो या विपक्ष सभी को बोलने की आजादी है। मगर 2024 के चुनाव में जिस प्रकार से सत्ता पक्ष एवं विपक्ष की ओर से जितने बड़े नेता उतनी बड़ी अमर्यादित टिप्पणियां एक दूसरे पर किया गया। वह भारत के लोकतंत्र में पहली बार देखने को मिला। प्रधानमंत्री से लेकर विपक्षी पार्टियों के बड़े-बड़े नेताओं पर अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल करने का न केवल आरोप लगे बल्कि अपनी-अपनी तरीके से इसकी आलोचना भी हुई ।
मगर मतदान के बाद जिस प्रकार से एग्जिट पोल पर सवाल उठाए जा रहे हैं ,उससे लोकतंत्र के चौथे स्तंभ मीडिया की विश्वसनीयता भी तार- तार हो रहा है । ऐसा नहीं की मीडिया की विश्वसनीयता पर सवाल अभी ही उठाए जा रहे हैं। विशेषकर जबसे मीडिया का व्यवसायीकारण हुआ है विश्वसनीयता का संकट बड़ा है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता।
राजनीति में सत्ता पक्ष तथा विपक्ष मीडिया को इंसल्ट करने का अपने-अपने तरीके से इस्तेमाल करते रहा है । पर इस बार जिस प्रकार से एग्जिट पोल पर विपक्ष हमलावर है ,वह चिंता का विषय है। क्योंकि राहुल गांधी ने एग्जिट पोल को मोदी मीडिया पोल कहकर इसे पूरी तरह से खारिज कर दिया है। वहीं आम आदमी पार्टी के फायर ब्रांड नेता संजय सिंह ने तो इसे भाजपा के दफ्तर में बैठकर स्क्रिप्ट तैयार करने जैसी बात भी कह दी है। बात इतनी पर ही रुकी रहती तो कुछ और था। विपक्षी पार्टियों एग्जिट पोल को मतगणना को प्रभावित करने की योजना तक बतला दिया है। जयराम रमेश ने इसे काउंटिंग को प्रभावित करने के उद्देश्य से भाजपा के पक्ष में बतलाकर आरोप लगा दिया है कि देश के गृह मंत्री अमित शाह ने देश के डेढ़ सौ से ऊपर डीएम से फोन पर बातचीत कर ली है। चुनाव आयोग ने इस पर संज्ञान लिया है। इसमें कितनी हकीकत है, कितना फंसाना यह संभव है आने वाले दिनों में सामने आ ही जाएगा। परंतु जिस मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ तक कहा जाता था, उस पर इस तरह से बगैर तीन दिनों का मतगणना का इंतजार किए विपक्षी पार्टियों द्वारा कठघरा में खड़ा करने का प्रयास किया जा रहा है। वह कहीं से भी लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं माने जा सकते हैं। क्योंकि इससे सिर्फ मीडिया की छवि पर ही आंच नहीं आ रही है। बल्कि देश की छवि भी कहीं न कहीं प्रभावित होगा । जिसकी चिंता विपक्षी पार्टियों को करनी चाहिए थी। कम से कम मतगणना के इंतजार के बाद ही एग्जिट पोल पर इतने बड़े सवाल उठाए जाने चाहिए थे। क्योंकि इतना तो माना ही जा सकता है की एग्जिट पोल का मतदान पर प्रभाव नहीं पड़ता है , इसलिए कि मतदान के बाद एग्जिट पोल सामने आता है। बावजूद विपक्षी पार्टियों का धैर्य इतना जल्दी खो जाना बड़ा ही हैरत में डालने वाली है।
बात यदि इतनी पर ही रुकी रहती तो कुछ और था इंडिया गठबंधन के घटक दलों ने 1 जून को ही सातवें चरण के मतगणना के दिन ही बैठक बुला ली थी। बैठक में देश में बनने वाली अगली सरकार पर रणनीति तैयार किया गया, अथवा क्या हुआ यह तो गठबंधन से जुड़े नेताओं को ही वास्तविक पता है। पर चुनाव जीतने के प्रति इंडिया गठबंधन के नेताओं का कॉन्फिडेंस का आकलन उनके प्रेस ब्रीफिंग से किया जा सकता है। जिसमें सारा फोकस इंडिया गठबंधन से जुड़े कार्यकर्ताओं को मतगणना केंद्र में मनोवैज्ञानिक रूप से एग्जिट पोल के दबाव में न आकर डटे रहने की बात कही गई। ताकि मतगणना केन्द्रों में मतगणना कर रहे गठबंधन के कार्यकर्ता ढीला नहीं पड़े। क्योंकि प्रेस ब्रीफिंग के दौरान बताया गया कि किसी भी हालत में मतगणना केंद्र से चुनाव परिणाम का सर्टिफिकेट जारी होने तक बाहर नहीं निकलें। रही बात 2024 के चुनाव को लेकर मीडिया की ओर से दिखलाए गए एग्जिट पोल का तो इसका लिटमसटेस्ट 4 जून को ही हो जाएगा।