Location: Garhwa
भाई सबका वक्त बदलता है !
भाई सबका वक्त बदलता है। बदला हुआ वक्त भले ही भविष्य सुधारे अथवा नहीं पर वर्तमान में तो पूछ बढ़ ही गई है। इस बढ़े हुए पूछ से इतराना नहीं है क्योंकि सब जानते हैं, यह चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात वाली स्थिति है। अभी जो नेताजी चुनाव को नजदीक आते देख अपने-अपने दल व पक्ष में शामिल कराने के लिए फूल माला लेकर पसीना बहा रहे हैं। चुनाव बाद जो जीता सो भी जो हारा सो भी , जल्दी नजर नहीं आने वाले हैं। बस भाई इसी को गांठ बांध लो और यह जो चार दिन की ही सही पर चांदनी आई है ।उसे अंधेरी रात में तब्दील होने से पहले जितना लाभ उठा सकते हो उठा लो ।
क्योंकि अनैतिक करने वालों से नैतिकता का सदाचार पूर्ण व्यवहार काम नहीं आएगा।
वैसे भी इन नेताओं की फितरत रहती है कि समय आने पर गधे को भी बाप कहने की लोकोक्ति को चरितार्थ करने में देर नहीं करते हैं पर जैसे ही मतलब निकल गया गिरगिट की तरह ऐसा रंग बदलेंगे जैसे की आज जो माला पहनाकर आवभगत करते फिर रहे हैं, कल मंजिल हासिल करने के बाद पहचानेंगे तक नहीं।
जहां तक वर्तमान में बड़ी पूछ का प्रश्न है सुनो जैसे-जैसे नजदीक चुनाव आते जा रहा है वैसे-वैसे फूल माला लेकर नेताजी का अपनी पार्टी व समर्थकों की सूची में शामिल करने के लिए दरवाजे दरवाजे खाक छानते फिरने का स्पीड बढ़ेगी। व्यवहार में भी भारी तब्दीली आने वाली है ऐसा लगेगा मानो उनके मन: मस्तिष्क में सिर्फ मतदाताओं की चिंता ही है, जिसके लिए खाक छानते फिर रहे हैं ।
इन नेताओं की ढ़िठई की भी भाई दाद देनी होगी ,क्योंकि अपने-अपने कार्यकाल के भ्रष्टाचार को भूलकर जिस प्रकार से अभी भ्रष्टाचार पर गला फाड़ फाड़ कर शोर मचा रहे हैं मानो इनके कार्यकाल में भ्रष्टाचार का नामे निशान नहीं था। हां अंतर इतना ही हो सकता है कि तबके नेताजी जिस भ्रष्टाचार की शुरुआत किए थे, उसे वर्तमान के नेताजी चरम पर पहुंचा दिए हैं ।तो भाई समय के साथ सब की कीमत बढ़ती है, तो ऐसे में भ्रष्टाचार ही कैसे पीछे रहेगा?