
Location: Garhwa
संदीप जयसवाल की रिपोर्ट
गढ़वा: गर्मी की तपिश जैसे-जैसे बढ़ रही है, वैसे-वैसे गढ़वा जिले में देसी फ्रिज यानी मिट्टी के मटकों की मांग भी आसमान छू रही है। लोग अब आधुनिक फ्रिज की बजाय पारंपरिक मटकों को अपनाकर न केवल ठंडक पा रहे हैं, बल्कि स्वास्थ्य लाभ भी उठा रहे हैं।
मटके का पानी स्वाभाविक रूप से ठंडा रहता है और यह शरीर को गर्मी में राहत देने के साथ-साथ पाचन में भी सहायक होता है। यही वजह है कि शहर से लेकर गांव तक, लोग अब फिर से इस पारंपरिक विकल्प की ओर लौट रहे हैं।
गढ़वा के कई बाजारों में मिट्टी के मटकों, सुराहियों और घड़ों की बिक्री में भारी तेजी देखी जा रही है। विशेषकर 5 लीटर की सुराही सबसे ज्यादा मांग में है, जिसे लोग घरों, दुकानों और कार्यालयों में उपयोग कर रहे हैं। स्थानीय दुकानदारों के अनुसार, हर दिन दर्जनों सुराहियां बिक रही हैं।
बिजली संकट में बना भरोसेमंद विकल्प
गढ़वा के ग्रामीण इलाकों में जहां गर्मी के मौसम में बिजली की आपूर्ति अनियमित हो जाती है, वहां मटके लोगों के लिए एक सस्ता और भरोसेमंद समाधान बनकर उभरे हैं। ये न तो बिजली खाते हैं और न ही किसी मेंटेनेंस की जरूरत होती है।
कच्चे माल की बढ़ती कीमतें बनीं चुनौती
हालांकि मांग में वृद्धि से कुम्हारों को थोड़ी राहत जरूर मिली है, लेकिन बढ़ती लागत ने उनकी कमर तोड़ दी है। गढ़वा के कुम्हार भरत प्रजापति बताते हैं, “इस बार मटकों की मांग अच्छी है, लेकिन मिट्टी, लकड़ी और भट्ठा जलाने के खर्च ने मुनाफा कम कर दिया है। पहले जो मटका 50 रुपये में बिकता था, अब उसे बनाने में ही 40 रुपये लग जाते हैं।” उन्होंने स्थानीय प्रशासन से अस्थायी बाजार की व्यवस्था की मांग भी की है।
परंपरा से जुड़ा प्रतीक बना देसी फ्रिज
मिट्टी के बर्तन सिर्फ उपयोगी नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर भी हैं। देसी फ्रिज यानी मटका अब एक प्रतीक बन चुका है – एक ऐसा प्रतीक जो आधुनिकता की दौड़ में भी अपनी जड़ें नहीं भूलता।
गढ़वा में देसी फ्रिज का यह पुनरुत्थान न केवल स्वास्थ्य और पर्यावरण की दृष्टि से सकारात्मक है, बल्कि यह परंपरा और स्थानीय कारीगरों के जीविकोपार्जन को भी सहारा दे रहा है