Location: Garhwa
गढ़वा-रंका विधानसभा क्षेत्र की राजनीति इन दिनों सत्ता संघर्ष और आरोप-प्रत्यारोप के बीच गहराती जा रही है। नवनिर्वाचित भाजपा विधायक सत्येंद्र नाथ तिवारी और पूर्व मंत्री मिथिलेश कुमार ठाकुर के बीच सियासी खींचतान अब केवल राजनीतिक बयानबाजी तक सीमित नहीं रही, बल्कि भ्रष्टाचार और प्रशासनिक लापरवाही के आरोपों के साथ गंभीर मोड़ ले चुकी है।
चुनाव में हार के बावजूद पूर्व मंत्री मिथिलेश कुमार ठाकुर की सत्ता पर पकड़ और प्रशासनिक तंत्र में प्रभाव लगातार चर्चा में है। विधायक तिवारी ने आरोप लगाया है कि ठाकुर ने अपने कार्यकाल के दौरान गढ़वा जिले में भ्रष्ट अधिकारियों को संरक्षण देकर एक भ्रष्ट तंत्र विकसित किया। उनका यह दावा उन स्थितियों की ओर इशारा करता है, जहां चुनावी जनादेश के बावजूद पूर्व मंत्री अपने प्रशासनिक प्रभाव को बनाए रखने में सफल दिखते हैं।
सत्येंद्र नाथ तिवारी का भ्रष्ट अधिकारियों और अवैध बालू खनन के खिलाफ सख्त रुख लेना अपने आप में एक बड़ा कदम है। उन्होंने आरोप लगाया है कि रंका और मेराल थानों में रातभर अवैध बालू उत्खनन का कार्य होता है, जो न केवल प्रशासन की नाकामी को उजागर करता है, बल्कि गढ़वा के प्राकृतिक संसाधनों के अनियंत्रित शोषण का भी संकेत है। तिवारी ने भ्रष्ट अधिकारियों की आय से अधिक संपत्ति की जांच करवाने और दोषियों को सजा दिलाने का संकल्प लिया है।
लेकिन सवाल उठता है कि क्या यह कदम वाकई जनता के हित में उठाया जा रहा है, या यह चुनावी रंजिश और पावर गेम का हिस्सा है?
सत्येंद्र नाथ तिवारी का यह दावा कि वे जनता से किए वादे पूरे न कर पाने पर इस्तीफा देने को तैयार हैं, उन्हें नैतिक रूप से मजबूत दिखाने की कोशिश है। साथ ही, यह भाजपा की राजनीति को नई धार देने का एक प्रयास भी हो सकता है। चुनाव के बाद अपने प्रतिद्वंद्वी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाना एक पुरानी रणनीति है, लेकिन इस बार यह देखना दिलचस्प होगा कि तिवारी अपने दावों को अमल में कैसे लाते हैं।
तिवारी का आरोप है कि मिथिलेश कुमार ठाकुर ने पांच वर्षों तक गरीबों का खून चूसने और अधिकारियों के माध्यम से भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने का काम किया। उनके अनुसार, ठाकुर अब भी बैकडोर से अपने पसंदीदा अधिकारियों को महत्वपूर्ण पदों पर बैठाकर गढ़वा में अपनी पकड़ बनाए हुए हैं। यह आरोप ठाकुर को नैतिक रूप से कमजोर करने की कोशिश के रूप में देखा जा सकता है।
सत्येंद्र नाथ तिवारी के आरोप गंभीर हैं, लेकिन प्रशासनिक तंत्र पर सवाल उठाने के लिए केवल बयानबाजी काफी नहीं। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि वे इन आरोपों को किस हद तक साबित कर पाते हैं और भ्रष्टाचारियों के खिलाफ उनकी कार्रवाई कितनी प्रभावी होती है। उनकी घोषणा कि वे आय से अधिक संपत्ति रखने वाले अधिकारियों की जांच के लिए विधानसभा, सीबीआई, ईडी और गृह मंत्रालय तक जाएंगे, बड़े कदम की ओर इशारा करती है।
इस पूरे प्रकरण में गढ़वा की जनता के सामने दो सवाल खड़े होते हैं। पहला, क्या यह सारा संघर्ष उनके मुद्दों को हल करने की दिशा में बढ़ रहा है, या यह केवल दो नेताओं के बीच सत्ता का खेल है? दूसरा, क्या भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के दावे वाकई प्रशासनिक सुधार की दिशा में कोई ठोस परिणाम देंगे, या यह सिर्फ सियासी हथकंडा बनकर रह जाएगा।
गढ़वा की राजनीति इस समय एक नाजुक दौर से गुजर रही है, जहां सत्ता और भ्रष्टाचार के मुद्दे आपस में उलझ गए हैं। सत्येंद्र नाथ तिवारी की भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई कितनी ईमानदार और प्रभावी साबित होती है, यह आने वाले समय में साफ होगा। फिलहाल, यह स्पष्ट है कि गढ़वा में सियासत का यह नया अध्याय केवल चुनावी हार-जीत तक सीमित नहीं, बल्कि व्यापक प्रशासनिक और नैतिक सवालों को खड़ा कर रहा है।