Location: Garhwa
झारखंड सरकार द्वारा 21 से 28 नवंबर तक चलाए गए ‘सरकार आपके द्वार’ अभियान का उद्देश्य था कि जनता अपनी समस्याएँ सीधे सरकार तक पहुंचाए और उनका समाधान मौके पर मिले। लेकिन गढ़वा जिले से प्राप्त आंकड़ों ने इस अभियान की वास्तविक तस्वीर सामने ला दी है। यह तस्वीर न सिर्फ जिले की व्यवस्था पर सवाल उठाती है, बल्कि साफ संकेत देती है कि सरकार की दो महत्त्वाकांक्षी योजनाएँ—मइयां योजना और अबुआ आवास योजना—अब राज्यभर में ठप पड़ने की कगार पर खड़ी हैं।
गढ़वा के सभी 189 पंचायतों में लगाए गए शिविर–सह–जनता दरबार में मईया समान योजना को छोड़कर शेष 31086 आवेदन मिले, मगर सबसे अधिक संख्या मइयां और अबुआ आवास योजना से संबंधित थी जिसका कुल आवेदन में जिक्र तक नहीं किया गया है।इससे यह साफ है कि लोग इन योजनाओं को लेकर सबसे अधिक उम्मीद लेकर पहुंचे थे। लेकिन हैरानी की बात यह है कि 31,086 आवेदनों को शिविर में ही ‘निपटारा’ दिखा दिया गया, जबकि वास्तव में इन दोनों योजनाओं के एक भी आवेदन की स्वीकृति या निष्पादन नहीं हुआ। इसका कारण बेहद चौंकाने वाला है—जिले में इन योजनाओं का लक्ष्य ही शून्य रखा गया था और दोनों योजनाओं के पोर्टल पहले से ही बंद पड़े थे। ऊपर से सरकार की ओर से न तो नए आवेदन लेने का निर्देश दिया गया और न ही पुराने आवेदनों के निपटारे का।
स्थिति यह है कि गढ़वा जिले में ही इन दोनों योजनाओं से जुड़े 25 से 30 हजार आवेदन प्रखंड स्तर पर लंबित पड़े हैं। यह आंकड़ा बताता है कि कागज़ों पर भले योजनाएँ चल रही हों, पर ज़मीनी कार्यवाही लगभग ठप हो चुकी है। मइयां योजना के तहत जिले में लगभग 2.25 लाख महिलाओं को पुराना लाभ तो मिल रहा है, लेकिन नई महिलाओं के लिए योजना पूरी तरह बंद है। अबुआ आवास योजना की हालत इससे भी बदतर है। आवेदन नहीं, स्वीकृति नहीं, कोई दिशा–निर्देश नहीं—मानो योजना सिर्फ नाम के लिए छोड़ दी गई हो।
गढ़वा के शिविरों से निकले यह तथ्य राज्य सरकार के दावों पर सीधा सवाल उठाते हैं। यदि जनता बड़ी उम्मीद लेकर शिविरों में पहुँची और उन्हें निपटारा के नाम पर केवल कागज़ पकड़ाया गया जबकि योजना की प्रक्रिया ही बंद हो चुकी थी, तो यह जनता के भरोसे के साथ खिलवाड़ ही है। सरकार को यह स्पष्ट करना होगा कि योजनाएँ चल रही हैं, रुकी हैं, बंद हैं या फिर इन्हें नए सिरे से शुरू किया जाएगा।
गढ़वा के आंकड़े सिर्फ एक जिले की हकीकत नहीं हैं; ये संकेत है कि मइयां और अबुआ आवास योजना अब पूरे झारखंड में दम तोड़ने की स्थिति में पहुँच चुकी हैं। यदि सरकार इन योजनाओं को सच में अपना ड्रीम प्रोजेक्ट मानती है, तो उसे तुरंत कार्रवाई करनी होगी; नहीं तो जनता के बीच यह संदेश साफ जा चुका है कि योजनाओं का शोर बहुत है, पर ज़मीन पर काम लगभग शून्य।
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