Location: Garhwa
आजादी के बाद पहली बार 1952 में चुनाव हुआ तब भवनाथपुर के नाम से यह विधानसभा अस्तित्व में नहीं आया था.1957 के दूसरे चुनाव में एकीकृत बिहार में 315 वीं विधानसभा के रूप में भवनाथपुर विधानसभा क्षेत्र अस्तित्व में आया. पहली बार मेराल प्रखंड के अटौला गांव के यदुनंदन तिवारी जो स्वतंत्रता सेनानी भी थे, इस क्षेत्र से विधायक बने.इसके बाद भवनाथपुर विधानसभा क्षेत्र की राजनीति की केंद्र में नगरउंटारी गढ़ परिवार मुख्य रूप से सामने आया. गढ़ परिवार के लोगों ने छह मर्तबा इस विधानसभा चुनाव क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया.
भवनाथपुर विधानसभा चुनाव क्षेत्र के अतीत पर गौर करें तो यहां की राजनीति नगर उंटारी गढ़ परिवार तथा उसके विरोध में ही रहा है,इसे दूसरे रूप में यह भी कर सकते हैं की नगर ऊंटरी राज परिवार बनाम समाजवाद के नाम पर इस विधानसभा चुनाव क्षेत्र में राजनीति होती रही है.यही कारण है कि यहां से नगर उंटारी गढ़ परिवार को समाजवादियों तथा उनके परिवार के लोगों ने ही चुनौती दी है. मिसाल के तौर पर प्रखर समाजवादी नेता स्व लाल हेमंत प्रताप देहाती स्व गिरवर पांडे तथा रामचंद्र केसरी ने गढ़ परिवार को राजनीतिक शिकस्त देते हुए इस विधानसभा चुनाव क्षेत्र से विधायक बने.वर्तमान में भी भानु प्रताप शाही तीसरा मर्तबा जो इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं समाजवादी परिवार से ही आते हैं.
नगर उंटारी गढ़ परिवार से सबसे पहले 1962 में शंकर प्रताप देव यहां से विधायक बने तथा लगातार दो बार चुनाव जीतकर 1969 तक इस विधानसभा चुनाव क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया. मगर 1969 के चुनाव में नगर उंटारी गढ़ परिवार के खिलाफ राजनीतिक रूप से बगावती तेवर अपनाते हुए समाजवाद का झंडा उठाएं लाल हेमेंद्र प्रताप देहाती की राजनीति इस इलाके में लोग बताते हैं कि उन दिनों तूफान की तरह चली और वे शंकर प्रताप देव से चुनाव में जीत दर्ज कर यह सिट छीन लिए, मगर 3 वर्ष बाद ही 1975 में गढ् परिवार की वापसी हो गयी शंकर प्रताप देव ने हार का बदला लेते हुए कांग्रेस पार्टी से अपनी जीत दर्ज की. आपातकाल के बाद कांग्रेस के खिलाफ आई लहर में 1977 में हुए चुनाव में इस विधानसभा चुनाव क्षेत्र से समाजवादी नेता रामचंद्र केसरी से शंकर प्रताप देव चुनाव हार गए पर 3 वर्ष के ही अंतराल में 19 80 में शंकर प्रताप देव कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीत गए. और एकीकृत बिहार में लघु सिंचाई एवं पशुपालन मंत्री बने.परंतु 1985 के चुनाव में शंकर प्रताप देव ने यह सीट अपने पुत्र राज राजेंद्र प्रताप देव को सौंप दी राज राजेंद्र प्रताप देव पिता के विरासत संभालने में 1985 के चुनाव में कांग्रेस के ही टिकट पर सफल हुए तथा युवा अवस्था में ही भवनाथपुर विधानसभा क्षेत्र का विधायक बन गए. 1990 में समाजवादी नेता गिरवर पांडे विधायक बने, गिरवर पांडे को भी इस क्षेत्र से दो बार प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला, इसके बाद इस विधानसभा चुनाव क्षेत्र से रामचंद्र केसरी तथा भानु प्रताप शाही विधायक बने.तात्पर्य यह कि गिरवर पांडे के हाथों से पराजित होने के बाद नगर अनटारी गढ़ परिवार 19 वर्ष तक इस विधानसभा चुनाव क्षेत्र से बाहर रहा. ऐसा नहीं कि इस दौरान गढ परिवार चुनाव मैदान से बाहर था राज राजेंद्र प्रताप देव तथा उनके छोटे भाई आनंत प्रताप देव इस क्षेत्र से किस्मत आजमाते रहे, पर 19 वर्ष बाद 2009 में कांग्रेस के ही टिकट पर अनंत प्रताप देव को चुनाव जीतने में सफलता मिली. मगर 2014 के चुनाव में आनंत प्रताप देव कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए तथा भानु प्रताप शाही के हाथों उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा.तब से लेकर अब तक लगातार दो बार चुनाव जीत कर भानु प्रताप शाही इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे है. एक बार पुन: अनंत प्रताप देव इस विधानसभा चुनाव क्षेत्र में पूरी तरह से अपनी नई पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा से जुड़कर राजनीतिक चहलकदमी कर रहे हैं 2019 के चुनाव में भाजपा से टिकट नहीं मिलने के कारण अनंत प्रताप देव निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे तथा उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा. निर्दलीय के रूप में मिली पराजय के बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा का दामन थामकर नक्सली पृष्ठभूमि से राजनीति में आए ताहिर अंसारी के साथ गलबहिया कर लगातार सक्रिय है. 2014 में अनंत प्रताप देव के चुनाव हारने के बाद नगर उंटारी गढ़ का इस क्षेत्र से कब्जा जो हटा है 10 वर्ष बाद क्या श्री देव इस बार कब्जा दिला पाएंगे. इसे लेकर भवनाथपुर में खूब चर्चा चल रही है. उनके सामने इस बार भी पूर्व मंत्री भानु प्रताप शाही जैसे इस क्षेत्र की राजनीति के नस-नस में रच बस गए भाजपा नेता हैट्रिक लगाने के उद्देश्य सामने होंगे. ऐसे में ताहिर अंसारी से दोस्ती तथा झारखंड मुक्ति मोर्चा के सिंबल अनंत प्रताप देव के किस्मत को खोलेगी यह तो भविष्य तय करेगा.मगर इससे इंकार नहीं किया जा सकता की भवनाथपुर में मुख्य मुकाबला अंनत प्रताप देव तथा भानु प्रताप शाही के बीच भी होने की पूरी संभावना है. क्योंकि 2019 का चुनाव परिणाम भी देख ले तो आनंत प्रताप देव निर्दलीय प्रत्याशी होने के बावजूद भानु प्रताप शाही को भारी शिकायत दी थी तथा मामुली अंतर से ही चुनाव हारे थे. उनके सामने के मुख्य प्रतिद्वदी भानु प्रताप शाही के सामने अपने 10 वर्ष के विधायकी कार्यकाल का एंटी इनकंबेंसी भी झेलना होगा. ऐसे में भवनाथपुर में मुकाबला रोचक होगा और इस मुकाबले को चुनाव परिणाम की दृष्टिकोण से रोचक बनाने में बहुजन समाज पार्टी के पंकज चौबे जैसे उम्मीदवार भी प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं, जिनके आधार पर भवनाथपुर विधानसभा चुनाव का परिणाम निर्भर कर सकता है
हलाकी चुनाव की तारीख का ऐलान भी नहीं हुआ है ऐसे में अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगा क्योंकि राजनीति में कब कौनसी स्थिति सामने आ जाएगा समय ही तय करता है. विशेष कर जब तक चुनाव के अखाड़े में पहलवान नहीं उतर जाते हैं तब तक तस्वीर साफ नहीं होगी. जहां तक 2024 विधानसभा चुनाव को लेकर बढी राजनीतिक चहलकादमी का प्रश्न है 2019 के चुनाव में दूसरे नंबर पर रहे बहुजन समाज पार्टी से यहां इस बार पंकज कुमार चौबे चुनाव मैदान में पूरी तरह से सक्रिय दिख रहे हैं. पंकज जिस प्रकार से लगातार जनसंपर्क अभियान चला रहे हैं तथा भवनाथपुर विधानसभा चुनाव क्षेत्र में उनकी पार्टी बहुजन समाज का जन आधार रहा है उन्हें भी एक गंभीर उम्मीदवार के रूप में अभी से देखा जा रहा है. भाजपा में भी रघुराज पांडे कन्हैया चौबे तथा विजय केसरी जैसे लोग चुनाव लड़ने के फिराक में है… जारी