Location: Garhwa
गढ़वा विधानसभा चुनाव के बाद राजनीतिक समीकरणों में तेजी से बदलाव देखने को मिल रहा है। झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के नेता और पूर्व मंत्री मिथिलेश कुमार ठाकुर और नवनिर्वाचित भाजपा विधायक सत्येंद्र नाथ तिवारी के बीच वर्चस्व की लड़ाई अब खुले मंच पर आ गई है। इस संघर्ष की शुरुआत गढ़वा जिले के रंका-रमकंडा सड़क निर्माण परियोजना से हुई है।
विवाद की पृष्ठभूमि
भाजपा विधायक सत्येंद्र नाथ तिवारी ने चुनाव प्रचार के दौरान भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़े कदम उठाने का वादा किया था। उन्होंने आरोप लगाया था कि गढ़वा के अधिकारियों ने तत्कालीन मंत्री मिथिलेश कुमार ठाकुर के संरक्षण में भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया। विधायक बनने के बाद, सत्येंद्र नाथ तिवारी ने इस मुद्दे पर कार्रवाई शुरू की और परियोजनाओं में कथित अनियमितताओं के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया।
दूसरी ओर, चुनाव में हारने के बाद मिथिलेश कुमार ठाकुर ने सार्वजनिक रूप से घोषणा की कि वह गढ़वा के विकास में हरसंभव सहयोग करेंगे। हालांकि, उन्होंने विकास कार्यों में बाधा डालने वालों के खिलाफ आवाज उठाने का भी संकेत दिया था।
रंका-रमकंडा सड़क निर्माण विवाद
विवाद तब भड़क उठा जब गंगा कंस्ट्रक्शन कंपनी द्वारा बनाई जा रही रंका-रमकंडा सड़क के निर्माण पर ग्रामीणों द्वारा रोक लगा दी गई। आरोप लगाया गया कि कंपनी सड़क निर्माण में गुणवत्ता की अनदेखी कर रही थी और जमीन मालिकों को मुआवजा नहीं दिया गया था। जबकि ग्रामीणों पर सड़क निर्माण कंपनी द्वारा प्राथमिकी दर्ज करा दिया गया।इससे ग्रामीणों का गुस्सा और भड़क गया।
झामुमो का दावा है कि ग्रामीणों द्वारा उठाए गए इन मुद्दों के पीछे विधायक सत्येंद्र नाथ तिवारी का हाथ है। वहीं, भाजपा समर्थकों का कहना है कि यह रोक सड़क निर्माण में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए लगाई गई।
राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप
झामुमो समर्थकों ने गढ़वा में पत्रकार वार्ता कर विधायक सत्येंद्र नाथ तिवारी पर सड़क निर्माण कार्य में बाधा डालने और संवेदक से अवैध वसूली के लिए संवेदक पर दबाव डालने का आरोप लगाया। उन्होंने भाजपा विधायक को विकास विरोधी करार दिया। दूसरी तरफ, सत्येंद्र नाथ तिवारी ने दावा किया कि उनका लक्ष्य गढ़वा में भ्रष्टाचार मुक्त शासन सुनिश्चित करना है।
हालांकि, इस विवाद में एक अहम बिंदु यह भी है कि झामुमो ने सड़क निर्माण की गुणवत्ता और मुआवजा मुद्दों पर चुप्पी साध रखी है। झामुमो द्वारा संवेदक के पक्ष में बयान देना इस बात का संकेत देता है कि उनका झुकाव सड़क निर्माण से ज्यादा संवेदक के समर्थन की ओर है।
टकराव के राजनीतिक मायने
यह टकराव आगामी दिनों में गढ़वा की राजनीति को और गर्म कर सकता है। रंका-रमकंडा सड़क निर्माण विवाद फिलहाल वर्चस्व की इस लड़ाई का केंद्र बिंदु बन गया है। दोनों नेताओं के समर्थक इस मुद्दे पर आमने-सामने हैं, जिससे गढ़वा के विकास कार्यों पर भी असर पड़ सकता है।
इस घटनाक्रम से यह स्पष्ट है कि गढ़वा विधानसभा में राजनीतिक संघर्ष अब विकास कार्यों और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों के इर्द-गिर्द घूमेगा। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि इस टकराव का समाधान कैसे निकलेगा और कौन इस राजनीतिक युद्ध में बाजी मारेगा।