Location: Garhwa
झारखंड के बिश्रामपुर विधानसभा क्षेत्र का चुनावी माहौल इस बार पूरी तरह से बदल गया है। विभिन्न वर्गों और पार्टियों से आए उम्मीदवारों ने इस क्षेत्र के जातीय समीकरण को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया है। जहां एक ओर इंडिया गठबंधन के अंतर्गत कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के उम्मीदवार आमने-सामने चुनाव मैदान में हैं, वहीं दूसरी ओर कई निर्दलीय और अन्य दलों के उम्मीदवारों ने मुकाबले को बहुकोणीय बना दिया है, जिससे जातीय और पारंपरिक वोट बैंक बिखरने की संभावना है।
जातीय समीकरणों में बदलाव और इंडिया गठबंधन की चुनौती
बिश्रामपुर में इस बार जातीय समीकरण पूरी तरह बदल गए हैं। इंडिया गठबंधन के तहत कांग्रेस और राजद के उम्मीदवार आमने-सामने हैं, जिससे गठबंधन का वोट बैंक विभाजित होता दिखाई दे रहा है। यह विभाजन भाजपा और अन्य विपक्षी दलों के लिए अनुकूल साबित हो सकता है, क्योंकि यह गठबंधन के वोट को कमजोर कर सकता है। कांग्रेस के सुधीर चंद्रवंशी और राजद के नरेश सिंह दोनों ही अपने-अपने जातीय आधार पर मतदाताओं को रिझाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उनके बीच का टकराव कांग्रेस-राजद गठबंधन को खासा नुकसान पहुंचा सकता है।
भाजपा के रामचंद्र चंद्रवंशी की भावनात्मक अपील
भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री रामचंद्र चंद्रवंशी इस बार फिर से हैट्रिक लगाने के उद्देश्य से चुनाव मैदान में हैं। वह अपने इस चुनाव को अंतिम बता कर मतदाताओं के साथ एक भावनात्मक जुड़ाव बना रहे हैं। चंद्रवंशी का यह दावा मतदाताओं को आकर्षित कर रहा है, और उनके समर्थकों के बीच एक लहर पैदा करने का प्रयास है। उन्होंने अपने पिछड़े वर्ग के समर्थकों को लामबंद करने की रणनीति अपनाई है, जिससे भाजपा का पारंपरिक वोट बैंक मजबूत हो सकता है।
अन्य प्रमुख उम्मीदवार और बहुकोणीय मुकाबला
भाजपा के अलावा बिश्रामपुर विधानसभा में अन्य उम्मीदवार भी अपनी उपस्थिति मजबूती से दर्ज करा रहे हैं। बसपा के राजन मेहता, जिन्होंने पिछले चुनाव में दूसरा स्थान हासिल किया था, एक बार फिर चुनावी मैदान में हैं और अपने मतदाताओं के बीच मजबूत पकड़ बनाने की कोशिश कर रहे हैं। वहीं, समाजवादी पार्टी की ओर से अंजु सिंह, जोकि अभिमन्यु सिंह की पत्नी हैं, भी चुनाव में कड़ी चुनौती दे रही हैं।
स्वतंत्र उम्मीदवारों में विकास दुबे की पत्नी जागृति दुबे के साथ विकास दूबे का युवाओं के बीच ग्लैमर ,स्वजातीय मत का बड़ा समर्थन इन्हें मजबूत बना रहा है।वहीं ओबीसी एकता अधिकार मंच के केंद्रीय अध्यक्ष ब्रह्मदेव प्रसाद ने भी मैदान में उतर कर मुकाबले को बहुकोणीय बना दिया है। इन उम्मीदवारों की उपस्थिति जातीय वोटों को विभाजित कर सकती है और पारंपरिक पार्टियों के लिए मुश्किलें पैदा कर सकती है।
जातीय समीकरण और मतदाताओं का प्रभाव
बिश्रामपुर में जातीय समीकरणों का चुनाव पर गहरा असर पड़ता है। पिछड़े वर्ग से आने वाले रामचंद्र चंद्रवंशी अपने आधार को मजबूती देने के लिए जुटे हैं, वहीं ओबीसी समुदाय से संबंधित ब्रह्मदेव प्रसाद भी इस वर्ग का समर्थन पाने के प्रयास में हैं। इसके अतिरिक्त, राजन मेहता और जागृति दुबे की उम्मीदवारी ने अपनी अपनी जातियों के मतदाताओं के वोट बंटवारा कर सबको बैचैन कर दिया है। इसी तरह, कांग्रेस और राजद के बीच हुई प्रतिस्पर्धा गठबंधन की ताकत को कमजोर कर सकती है, जिससे भाजपा और अन्य निर्दलीय उम्मीदवारों को फायदा मिल सकता है।
बिश्रामपुर का चुनावी परिदृश्य और संभावित परिणाम
इस बार बिश्रामपुर में बहुकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है, जहां जातीय समीकरणों के बिखराव और गठबंधन के बीच दरार के चलते सभी प्रमुख पार्टियों के बीच कांटे की टक्कर है। रामचंद्र चंद्रवंशी अपने अंतिम चुनाव के भावनात्मक कार्ड और भाजपा की मजबूत संगठनात्मक ताकत के दम पर आगे बढ़ रहे हैं, वहीं अन्य उम्मीदवार भी अपनी जातीय और क्षेत्रीय पकड़ के सहारे जनता को अपनी ओर खींचने का प्रयास कर रहे हैं।
कुल मिलाकर, इस बार बिश्रामपुर का चुनाव भाजपा, कांग्रेस, राजद, बसपा, समाजवादी पार्टी और निर्दलीय उम्मीदवारों के बीच एक रोमांचक मुकाबला बन गया है। जातीय समीकरणों के टूटने और उम्मीदवारों के बीच विभाजन के कारण वोटों का बिखराव संभावित है, जिससे परिणाम अनुमान से कहीं अधिक अप्रत्याशित हो सकते हैं।