
रंका (गढ़वा): हाथियों और वन्य जीवों द्वारा ग्रामीण इलाकों में घरों और फसलों को भारी नुकसान पहुंचाए जाने के बावजूद पीड़ितों को मुआवजा देने में वन विभाग की लापरवाही सामने आई है। वन प्रमंडल पदाधिकारी कार्यालय, गढ़वा के अधिकारियों की उदासीनता के कारण सवा साल बीतने के बाद भी किसानों और गरीब परिवारों को मुआवजा नहीं मिल सका है। इससे ग्रामीणों और भुक्तभोगी किसानों में गहरा आक्रोश व्याप्त है।
रंका पश्चिमी वन क्षेत्र के लुकुम्बार गांव निवासी जवाहर भुईयां, कामेश्वर कोरवा, दिनेश्वर यादव, सिगसिगा गांव निवासी सुरजदेव यादव और सुरेश यादव, डाले गांव के सुशील भुईयां, रमण कोरवा, अनूप कोरवा सहित कई अन्य पीड़ितों ने बताया कि अक्टूबर और नवंबर 2023 में जंगली हाथियों के झुंड ने उनके घरों को बुरी तरह क्षतिग्रस्त कर दिया था। कई घर रहने लायक नहीं बचे। सेरासाम, सेमरखाड़, खरडीहा, तेतरडीह, तेनूडीह समेत अन्य गांवों के किसानों की तेलहन और दलहन समेत अगहनी फसलें भी नीलगाय, हिरण और अन्य वन्य जीवों ने बर्बाद कर दी थीं।
पीड़ितों ने बताया कि विभागीय अधिकारियों ने फरवरी 2024 में आवेदन लेकर सभी औपचारिकताएं पूरी कराई थीं। इसके बावजूद आज तक न तो मुआवजा मिला है और न ही किसी तरह की सरकारी सहायता। इससे कई परिवार बदहाली की स्थिति में जीवन यापन कर रहे हैं।
भुक्तभोगियों ने आरोप लगाया कि तत्कालीन वन प्रमंडल पदाधिकारी ने आवंटन मिलते ही मुआवजा देने का आश्वासन दिया था। लेकिन उनके स्थानांतरण के बाद अब वर्तमान अधिकारी और क्षेत्र पदाधिकारी उनसे संवाद करने तक को तैयार नहीं हैं।
मुआवजा भुगतान में देरी पर रंका पश्चिमी वन क्षेत्र पदाधिकारी गोपाल चंद्रा ने कहा कि मुआवजा वितरण में काफी देर हो चुकी है। दुर्भाग्य से फिलहाल आवंटन का अभाव है। जैसे ही विभागीय स्तर पर आवंटन उपलब्ध होगा, मुआवजा राशि दी जाएगी, लेकिन यह कब तक होगा, कहना मुश्किल है।
इस विषय पर समाजसेवी यैवंत चौधरी ने कहा कि मुआवजा वितरण में देरी से संबंधित अधिकारियों को उगाही का अवसर मिल जाता है। पौने दो साल का समय बीतने के बावजूद यदि आवंटन का अभाव बताया जा रहा है, तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने कहा कि अनुसूचित जाति, जनजाति और गरीब परिवारों के उजड़े सपनों पर वन विभाग के अधिकारियों को संवेदनशीलता दिखानी चाहिए। श्री चौधरी ने विभागीय अधिकारियों से अविलंब मुआवजा राशि भुगतान करने की मांग की।