Location: Garhwa
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गढ़वा।
मेराल थाना क्षेत्र के रेजो गांव में तिलक समारोह के दौरान हुई हर्ष फायरिंग में पांच लोगों के घायल होने के मामले में पुलिस की कार्रवाई शुरू से ही संदेह के घेरे में रही है। गोली लगने जैसी गंभीर घटना के बावजूद इसे दबाने की कोशिश की गई। घायलों का इलाज गढ़वा के एक निजी नर्सिंग होम में चुपचाप कराया गया, लेकिन पुलिस न तो घटनास्थल की त्वरित जांच कर सकी, न ही घायलों के इलाज की कोई जानकारी सार्वजनिक की गई।
घटना के बाद न तो मेडिकल रिपोर्ट सामने लाई गई और न ही अस्पताल द्वारा पुलिस को विधिवत सूचना दी गई। इससे यह संदेह और गहरा होता है कि पूरा मामला कहीं न कहीं राजनीतिक संरक्षण और प्रभावशाली लोगों की मिलीभगत के कारण दबाया जा रहा था।
पुलिस की भूमिका शुरुआत से ही लीपापोती करने वाली दिख रही है। यदि स्थानीय विधायक सत्येंद्र नाथ तिवारी ने इस घटना को लेकर प्रेस विज्ञप्ति जारी कर सवाल नहीं उठाए होते, तो संभवतः यह मामला पूरी तरह से दफन कर दिया जाता। विधायक के दबाव में ही घायलों में शामिल मुकेश तिवारी द्वारा प्राथमिकी दर्ज करवाई गई—वह भी केवल खानापूर्ति के रूप में।
घटना में जिन लोगों को गोली लगी, उनका इलाज जिस निजी नर्सिंग होम में हुआ, उसने भी पुलिस को सूचना देने की आवश्यकता नहीं समझी। सबसे बड़ा सवाल यही है—क्या यह रवैया किसी आम नागरिक के साथ भी होता? या फिर यह सब रसूख और सत्तासीन लोगों के दबाव का ही नतीजा है?
रेजो गोलीकांड अब केवल एक हर्ष फायरिंग की घटना नहीं, बल्कि सिस्टम में राजनीतिक हस्तक्षेप, प्रशासनिक निष्क्रियता और पुलिस की साख पर सवाल खड़ा करने वाला मामला बन चुका है।
जनता जानना चाहती है:
पुलिस ने शुरू से मामले को क्यों दबाया?
निजी अस्पताल ने घायलों की सूचना क्यों नहीं दी?
क्या प्रशासन रसूखदारों के दबाव में काम कर रहा है?
इस मामले में सिर्फ जाने अनजाने में गोली नहीं चली है—बल्कि कानून, सिस्टम और जनविश्वास तीनों बुरी तरह जख्मी हुए हैं।