केंद्र सरकार द्वारा मनरेगा योजना के अंतर्गत ग्रामीण विकास के लिए रंका प्रखंड में तैनात की गई विशेषज्ञों की सात सदस्यीय सीएफपी टीम की मेहनत पर पानी फिर गया है। इस टीम ने अक्टूबर 2022 से मार्च 2025 तक प्रखंड के नौ पंचायतों के 24 गांवों का गहन अध्ययन कर लगभग 1400 जनोपयोगी योजनाओं का प्रस्ताव तैयार किया था, लेकिन ढाई साल गुजर जाने के बावजूद ये योजनाएं जमीन पर नहीं उतर सकीं।
बताया जाता है कि इन प्रस्तावों को प्रखंड विकास पदाधिकारी और मनरेगा के प्रखंड कार्यक्रम पदाधिकारी द्वारा दरकिनार कर दिया गया। इन अधिकारियों ने अपनी मनमर्जी की योजनाएं लागू कर निजी लाभ और दलालों को फायदा पहुंचाने की दिशा में काम किया, जबकि सीएफपी टीम द्वारा तैयार योजनाएं जल संरक्षण, आजीविका संवर्धन, बंजर भूमि सुधार, मेड़बंदी और ग्रामीण आधारभूत ढांचे जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर केंद्रित थीं।
टीम ने किया था व्यापक सर्वे
भारत सरकार ने मनरेगा के दिशा-निर्देशों के तहत अनुसूचित जाति, जनजाति और अत्यंत पिछड़े वर्गों की बहुलता वाले नौ पंचायतों — दुधवल, कटरा, बिश्रामपुर, तमगे कला, बाहाहारा, सिरोई खुर्द, कंचनपुर, खरडीहा और सोनदाग — में सीएफपी टीम को तैनात किया था। इसमें तीन आजीविका विशेषज्ञ, तीन प्राकृतिक संसाधन प्रबंधक और एक भू-स्थानिक सूचना पदाधिकारी शामिल थे।
इन विशेषज्ञों ने तीस महीनों तक गांव-गांव जाकर ग्रामीणों की सहमति से योजनाओं का प्रारूप तैयार किया, जिसका उद्देश्य संसाधनविहीन ग्रामीण क्षेत्रों का सर्वांगीण विकास था। लेकिन अधिकारियों की लापरवाही और मनमानी के चलते इन योजनाओं को रद्दी की टोकरी में डाल दिया गया।
मनरेगा माफिया-प्रशासन गठजोड़ उजागर
स्थानीय सूत्रों के अनुसार, मनरेगा योजना का अधिकांश बजट अब भी टीसीबी और डोभा जैसी सीमित योजनाओं पर ही खर्च हो रहा है, वह भी एक ही स्थान पर बार-बार। इन योजनाओं के नाम पर वर्षों से राशि की निकासी और बंदरबांट का खेल जारी है।
सीएफपी टीम के प्रखंड समन्वयक रविकांत कनौजिया ने बताया कि मनरेगा के तहत लगभग 250 प्रकार की योजनाओं पर काम करने का प्रावधान है, लेकिन रंका में इसे कुछ सीमित योजनाओं तक समेट दिया गया है। इससे सिर्फ अधिकारी और उनके करीबी लाभान्वित हो रहे हैं, जबकि ग्रामीण अब भी आर्थिक तंगी और संसाधनहीनता से जूझ रहे हैं।
प्रशासन की सफाई
इस पूरे मामले पर जब मनरेगा के प्रखंड कार्यक्रम पदाधिकारी मो. हासिम अंसारी से पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि सीएफपी टीम द्वारा प्रस्ताव पिछले वित्तीय वर्ष में दिया गया था, जिसकी उन्हें जानकारी नहीं थी। यदि टीम अगली बार प्रस्ताव देती है, तो उसके क्रियान्वयन का प्रयास किया जाएगा।
निष्कर्ष
यह स्थिति न केवल केंद्र सरकार की योजनाओं को ठेंगा दिखाने जैसा है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि किस प्रकार प्रशासनिक उदासीनता और भ्रष्टाचार ने ग्रामीण विकास की संभावनाओं को कुचल दिया है। यदि जल्द ही ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो रंका प्रखंड की विकास योजनाएं कागजों तक ही सिमट कर रह जाएंगी।