गढ़वा में जातीय राजनीति का खेल: ब्राह्मण समाज के नाम पर स्वार्थ साधने की कोशिश

Location: Garhwa

रविवार को गढ़वा के जिला मुख्यालय पर एक ऐसी घटना घटी जिसने राजनीति के गिरते स्तर और जातीय राजनीति की घटिया चालों को उजागर किया। रंका मोड़ पर भाजपा विधायक सत्येंद्र नाथ तिवारी का पुतला फूंका गया। इसे ब्राह्मण समाज से जोड़ने की कोशिश की गई, लेकिन असल में यह किसी पार्टी विशेष के चंद कार्यकर्ताओं की राजनीति चमकाने की साजिश थी।

जातीय राजनीति का दुष्चक्र

गढ़वा विधानसभा क्षेत्र के चुनाव परिणामों ने स्पष्ट संदेश दिया कि जनता जातीय राजनीति को नकार चुकी है। इसके बावजूद, राजनीति के कुछ स्वार्थी तत्व बार-बार जातीय कार्ड खेलकर माहौल को दूषित करने की कोशिश कर रहे हैं। जिस पार्टी ने यह प्रदर्शन किया, वह चुनाव के दौरान जातीय आधार पर लोगों को बांटने की कोशिश में पूरी तरह विफल रही।

इस पार्टी ने जातीय राजनीति को साधने के लिए गढ़वा में विभिन्न जातियों के महापुरुषों की प्रतिमाएं स्थापित करने में लाखों रुपये खर्च किए। लेकिन चुनाव परिणामों ने यह दिखा दिया कि जनता को इन खोखले प्रयासों से बहकाया नहीं जा सकता। इसके बावजूद, जाति के नाम पर राजनीतिक स्वार्थ साधने का यह नया प्रयास न केवल निंदनीय है बल्कि समाज को बांटने वाला भी है।

जाति को मोहरा बनाना: अस्वीकार्य और घातक

यह समझना होगा कि राजनीतिक विरोध करना किसी भी लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा हो सकता है। लेकिन जब विरोध के लिए जाति को मोहरा बनाया जाए, तो यह समाज के ताने-बाने को छिन्न-भिन्न करने की साजिश बन जाती है। ब्राह्मण समाज के नाम पर पुतला जलाने वाले लोग क्या यह नहीं समझते कि उनका यह कृत्य समाज में विभाजन पैदा कर सकता है?

गढ़वा की जनता ने पहले ही जातीय राजनीति को खारिज कर दिया है। इसके बावजूद, कुछ स्वार्थी तत्व अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए ऐसी हरकतें कर रहे हैं। यह केवल उनकी हताशा और असफलता को दर्शाता है।

गढ़वा की जनता का संदेश

गढ़वा की जनता ने 2024 के चुनाव में दिखा दिया कि वह जातीय राजनीति के झांसे में नहीं आएगी। जातीय आधार पर माहौल बिगाड़ने वालों को जनता ने न केवल नकारा बल्कि उनकी रणनीतियों पर पानी फेर दिया।

गढ़वा में ब्राह्मण समाज के नाम पर विधायक सत्येंद्र नाथ तिवारी का पुतला फूंकने वाले यह भूल गए कि जनता अब जागरूक हो चुकी है। जातीय राजनीति का यह खेल अब पुराना हो चुका है।
यह कहना गलत नहीं होगा कि जिस पार्टी ने अपने आका के आदेश पर जातीय राजनीति साधने के लिए लाखों रुपये खर्च किए, वही अब हार के बाद बौखलाहट में ऐसे प्रयास कर रही है।

गढ़वा की जनता को यह याद दिलाने की जरूरत नहीं कि वह जातीय विभाजन के बजाय सद्भाव को प्राथमिकता देती है। अब समय है कि राजनीतिक दल भी यह समझें और समाज को बांटने के प्रयास छोड़कर जनता की वास्तविक समस्याओं पर ध्यान दें।

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  • Vivekanand Upadhyay

    Location: Garhwa Vivekanand Updhyay is the Chief editor in AapKiKhabar news channel operating from Garhwa.

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