
Location: Garhwa
“उचित कार्रवाई नहीं हुई तो न्यायालय में लगाएंगे गुहार” – संजय चौधरी
गढ़वा: खजूरी जलाशय मत्स्यजीवी सहयोग समिति लिमिटेड, बीरबंधा ने पुराना समाहरणालय गढ़वा के सामने एक दिवसीय धरना प्रदर्शन किया। प्रदर्शन का उद्देश्य जलाशय बंदोबस्ती में कथित अनियमितताओं के खिलाफ आवाज उठाना था।
समिति का आरोप:
समिति का कहना है कि उनकी संस्था, जो एक निबंधित इकाई है, बंदोबस्ती के सभी आवश्यक मानदंड पूरे करने के बावजूद जिला मत्स्य पदाधिकारी द्वारा बंदोबस्ती से वंचित रखी जा रही है। समिति अध्यक्ष संजय चौधरी ने कहा, “हम लगातार प्रयासरत हैं, लेकिन हमें केवल आश्वासन ही मिलता है। अब तक की प्रक्रिया में स्थानीय पदाधिकारियों के रवैये ने हमें काफी परेशान किया है।”
रिश्वत और अनियमितताओं का आरोप:
समिति ने जिला मत्स्य पदाधिकारी, जिला सहकारिता पदाधिकारी, और सहायक निबंधक सहयोग समितियों पर गंभीर आरोप लगाए। उनका कहना है कि अधिकारियों ने बंदोबस्ती के लिए 1 लाख रुपये रिश्वत की मांग की, जिसे समिति पूरा करने में असमर्थ है। इसके अलावा, खजूरी जलाशय विस्थापित मत्स्यजीवी सहयोग समिति को कथित रूप से अवैध तरीके से बंदोबस्ती दी गई है।
धरने में उठाई गई मांगें:
बंदोबस्ती प्रक्रिया में हो रही अनियमितताओं की जांच की जाए।
खजूरी जलाशय की बंदोबस्ती को रद्द कर समिति को विधिसम्मत बंदोबस्ती दी जाए।
दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई की जाए।
रोजगार की समस्या:
समिति ने कहा कि जलाशय के बंदोबस्ती से वंचित होने के कारण लगभग 200 गरीब, भूमिहीन और मछुआरा परिवार बेरोजगारी और भुखमरी की स्थिति में आ गए हैं। इन परिवारों के पास मत्स्य पालन का परंपरागत अनुभव और प्रशिक्षण है, लेकिन स्थानीय अधिकारियों की मनमानी के कारण वे अपने अधिकार से वंचित हैं।
उपायुक्त को सौंपा ज्ञापन:
धरना प्रदर्शन के दौरान उपायुक्त, गढ़वा को ज्ञापन सौंपा गया, जिसमें मामले को गंभीरता से लेने और न्यायसंगत समाधान की मांग की गई।
प्रदर्शन में शामिल लोग:
धरने में समिति सचिव संजय कुमार चौधरी, कोषाध्यक्ष अजय चौधरी सहित कई कार्यकारिणी सदस्य और स्थानीय महिलाएं व पुरुष बड़ी संख्या में शामिल हुए। सभी ने एक स्वर में न्याय की गुहार लगाई।
समिति की चेतावनी:
अध्यक्ष संजय चौधरी ने कहा, “अगर हमारी मांगों पर उचित कार्रवाई नहीं की गई, तो हम न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के लिए मजबूर होंगे।”
यह प्रदर्शन मछुआरा समुदाय के रोजगार और अधिकारों की लड़ाई को लेकर प्रशासन की निष्क्रियता पर गंभीर सवाल खड़े करता है।