किसान बेहाल,खेत जुताई करने एवं बीज लेने के पैसे हाथ में नहीं

Location: Ranka

संवाद रंका (गढ़वा) :- रंका प्रखंड के खेतिहर किसान बेसहारों की श्रेणी में खड़े हो चुके हैं राज्य सरकार द्वारा मिलने वाले सुविधा भी सरकार के फाईलों तक सिमट कर रह गए हैं जमीनी हकीकत यह है कि इस इलाके के किसान सदियों पूर्व की परंपरा के तहत खेती कर किसी तरह अपने परिवार का भरण-पोषण करने की जद्दोजहद में लगे हैं। आर्द्रा नक्षत्र समाप्ति की ओर है मगर अधिकांश किसान न तो धान का बीचड़ा कर सके हैं और न ही भदईं और टांड़ खेत में होने वाले अगहनी फसल को बुआई कर सके हैं इस बावत पिछले पचास वर्षों से लगातार खेती के सहारे अपने परिवार का भरण-पोषण करने वाले किसान भोला ठाकुर ने खेतिहर किसानों का दर्द बयां करते हुए बताया कि आज किसानों के पास खेत जुताई करने एवं बीज लेने के पैसे हाथ में नहीं है उधार पर जिंदगी कट रही है इस वर्ष समय वारिश तो हुई मगर पिछले सैकड़ों वर्ष से चली आ रही सामाजिक दुर्व्यवस्था के वजह से समय पर खेती नहीं हो पा रही है गर्मी के मौसम में बैसाख माह में मेष संक्रान्ति के दिन से 99 फिसदी लोगों के पालतू मवेशी फ्री कर दिए जाते हैं जो बहुत मुश्किल से सावन के महीने में बिराम लगता है तब तक जो भी भदईं और अगहनी फसल बोए गए होते हैं अधिकांशतः बर्बाद हो जाया करते हैं ‌इस बगावत शिकायत कोई सुनने समझने वाला नहीं है सभी के अपने अपने अलग-अलग तर्क हुआ करते हैं वहीं दूसरी तरफ सरकार द्वारा किसानों को समय पर खेती करने और महाजन के पास जाने से बंचने के लिए केसीसी ऋण की ब्यवस्था कर रखी मगर वह भी दिखावा ही साबित हो रहा है इस बावत जानकारी देते हुए बीटीएम ने बताया कि वित्तिय वर्ष 2021-022 और 2022 – 023 के दौरान रंका प्रखंड के विभिन्न पंचायतों के योग्य किसानों को केसीसी ऋण उपलब्ध कराए जाने के लिए ग्यारह सौ पन्द्रह किसानों का आवेदन भारतीय स्टेट बैंक और झारखंड राज्य ग्रामीण बैंक को तमाम औपचारिकताओ को पूरा करने के बाद भेजा गया था मगर बैंकों द्वारा एक भी किसान को केसीसी ऋण उपलब्ध नहीं कराया जा सका ऐसे में सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकारी ब्यवस्था किसानों के सुदिढ़ीकरण में कितना सहायक है और तो और पिछले दो वर्षों से तमाम औपचारिकताओ को पूरा करने के बावजूद कृषि विकास विभाग द्वारा किसानों को अनुदानित दर पर दिया जाने वाला कृषि उपकरण भी सरकारी मर्जी के वजह से खंटाई में पड़ा हुआ है ऐसे में किसानों के बेसहारा होने का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।

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Mahendra Ojha

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