रंका में मनरेगा घोटाले का आरोप, RTI कार्यकर्ता ने SDM से की जांच की मांग

Location: Ranka


रंका, गढ़वा: रंका प्रखंड के 14 पंचायतों में मनरेगा योजना के तहत चल रहे विकास कार्यों को लेकर गंभीर अनियमितताओं का आरोप लगा है। आरटीआई कार्यकर्ता यैवंत चौधरी ने अनुमंडल पदाधिकारी रुद्र प्रताप को आवेदन देकर मामले की जांच कर प्रभावी कार्रवाई की अनुशंसा करने की मांग की है।

आरटीआई के माध्यम से प्राप्त जानकारी के आधार पर यैवंत चौधरी ने आरोप लगाया है कि पिछले दो वर्षों में मनरेगा योजना के नाम पर लगभग 24 करोड़ रुपये की फर्जी निकासी की गई है। इसमें मनरेगा से जुड़े अधिकारी, ग्राम पंचायतों के मुखिया, रोजगार सेवक और पंचायत सचिव की संलिप्तता बताई गई है। आरोप है कि विकास योजनाओं को लागू करने में सरकार द्वारा निर्धारित नियमों के बजाय अधिकारियों की मनमर्जी से काम हो रहा है, और कार्यों का निष्पादन कागजों पर ही कर दिया जा रहा है।

उन्होंने बताया कि मजदूरों से आवेदन लेने, अधकट्टी रसीद देने और पंजी संधारण करने जैसे अनिवार्य प्रावधानों का पालन नहीं किया गया। इससे मजदूरी मद में भी व्यापक घोटाले की आशंका है। इसके अलावा वेंडरों को सामग्री आपूर्ति के लिए कोई लिखित कार्यादेश या पंजी संधारण नहीं किया गया, और केवल ‘जुबानी जमा खर्च’ के आधार पर लाखों रुपये का भुगतान कर दिया गया।

चौधरी ने यह भी कहा कि उप विकास आयुक्त के पत्रांक 804, दिनांक 29.06.2018 के अनुसार, सामग्री की खरीद लाभुकों द्वारा की जानी चाहिए और भुगतान लाभुक के खाते में रॉयल्टी कटौती के साथ होना चाहिए। वहीं, सामग्री आपूर्ति की पुष्टि खुद प्रखंड विकास पदाधिकारी को करनी होती है, जो नहीं की गई।

मनरेगा के नियमों का नहीं हो रहा पालन

मनरेगा के प्रावधानों के अनुसार ग्राम पंचायत की कार्यकारिणी समिति, मेठ और रोजगार सेवकों द्वारा आपूर्ति की गई सामग्री का नियमित मूल्यांकन करना अनिवार्य है। ग्राम पंचायत, वार्ड सदस्यों के प्रशिक्षण पुस्तिका के अनुसार, मास्टर रोल का सत्यापन वार्ड सदस्य द्वारा अनिवार्य रूप से किया जाना चाहिए, अन्यथा एमआईएस में प्रविष्टि नहीं की जा सकती।

झारखंड सरकार के ग्रामीण विकास विभाग के तत्कालीन प्रधान सचिव एनएन सिन्हा द्वारा जारी पत्रांक (एम)905 दिनांक 16.05.2016 में भी इन बातों को स्पष्ट रूप से निर्देशित किया गया था, लेकिन इनका पालन नहीं हो रहा है।

आरटीआई कार्यकर्ता ने आरोप लगाया कि इस तरह की कार्यसंस्कृति के कारण विकास कार्यों के नाम पर करोड़ों की राशि खर्च होने के बावजूद जमीनी स्तर पर कोई ठोस बदलाव नहीं हो रहा है। वहीं, भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों और दलाल किस्म के लोगों की लगातार पौ-बारह हो रही है।


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  • Mahendra Ojha

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