Location: Garhwa
मनरेगा मतलब बिचौलियों का राज
गढ़वा —मनरेगा योजना, जो ग्रामीण इलाकों में रोजगार की गारंटी देने के लिए जानी जाती है, गढ़वा जिले में पुरी तरह से बिचौलियों के गिरफ्त में फंसती दिख रही है। यह योजना अब ‘महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना’ से बदलकर ‘महात्मा गांधी राष्ट्रीय बिचौलिया गारंटी योजना’ बनती जा रही है।
जौब कार्डधारी मजदूरों का जौब कार्ड मजदूरों के घर के बजाय बिचौलियों के घर शोभा बढ़ाते रहती है। बदलते में मजदूर को सप्ताह के एक दिन की मजदूरी बिचौलियों से बैंक से मजदूरी निकासी के बदले भुगतान कर दिया जाता है। बेचारे मजदूर इतने से संतोष करने पर मजबुर हैं।
मजदूर की हालत यह है कि रोज़गार की उम्मीद लेकर पंचायत कार्यालय जाते हैं, लेकिन वहां बिचौलियों की फौज पहले से मौजूद होती है। ऐसा लगता है मानो वे रोजगार नहीं, बल्कि इनके बीच फुटबॉल खेलने का मौका मांग रहे हो।
बिचौलियों की मेहनत की का क्या कहना है सुबह-सुबह ही मुखियाजी के पास पहुंच जाते हैं और फॉर्म भरने की प्रक्रिया में ऐसे जुट जाते हैं जैसे वे खुद मनरेगा के कामगार हों। उनका उद्देश्य होता है कि असली मजदूर काम न करें और सारा पैसा उनके पास चला जाए।
अक्सर पंचायत भवन के बाहर या मुखियाजी के इर्द-गिर्द लगी लम्बी लाइन में देखा जाता है कि कैसे बिचौलियों के एक समूह ने एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा करते हुए सबसे तेज फॉर्म भरने की प्रतियोगिता की। सिस्टम अपने चैंपियन बिचौलियों के तारीफ करते नहीं थकता हैं , इस बार फॉर्म भरने की गति ने नया रिकॉर्ड बना लिया है। अगले साल इसका नाम गिनीज बुक में भी दर्ज हो सकता है। बिचौलियों की तरीका के पीछे सिस्टम को बंधी- बंधायी कमिशन है।
गाँव का एक मजदुर ने इस परिस्थिति पर गहरा दुख जताया । उसने बताया, हमने सुना था कि मनरेगा हमें आत्मनिर्भर बनाएगा, लेकिन यहाँ तो बिचौलिए ही आत्मनिर्भर हो गए हैं। हमें बस उनके दस्तखत करने की मजदूरी मिलती है।
पंचायत के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, हमारे पास फॉर्म तो बहुत आ जाते हैं, लेकिन जब काम शुरू करने की बात होती है, तो बिचौलिए कह देते हैं कि मजदूर उपलब्ध नहीं हैं। इस प्रकार, काम का बजट पास हो जाता है और पैसे भी निकल जाते हैं, लेकिन असली मजदूरों तक पहुंच नहीं पाते।
सरकार ने इस स्थिति को सुधारने का वादा किया है, लेकिन गढ़वा जिले के निवासियों को अब भी आशा है कि मनरेगा योजना उनके जीवन में सुधार लाएगी। वे इंतजार कर रहे हैं कि कब यह योजना बिचौलियों के गिरफ्त से मुक्त हो और असली मजदूरों तक पहुंचे।
इधर बिचौलियों के सिस्टम से बाहर के मजदूर और उनके साथी अपने मनरेगा कार्डों को संभालकर रखते हैं, जैसे वे कोई अदृश्य खजाना हो, जिसका कभी उपयोग नहीं हो सकता।