
Location: रांची
झारखंड भाजपा इस समय संगठनात्मक असमंजस और आंतरिक द्वंद्व के दौर से गुजर रही है। प्रदेश संगठन में नेतृत्व को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं हो पा रही है। यही कारण है कि अब तक प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति नहीं हो सकी है, यहां तक कि मंडल और जिला स्तर पर भी संगठन चुनाव अधर में लटका हुआ है। इस बीच भाजपा ने बाबूलाल मरांडी को विधायक दल का नेता बनाकर पहला कदम जरूर बढ़ाया है, जिसका संबंध संगठन की आगामी रणनीति से भी जोड़ा जा रहा है। लेकिन झारखंड भाजपा की अंदरूनी राजनीति जिस राह पर आगे बढ़ रही है, वह उसे असमंजस और अनिश्चितता की स्थिति में डाल रही है।
झारखंड की भाजपा राजनीति में असमंजस तब और गहरा गया जब पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास की वापसी हुई। इसके बाद से पार्टी के भीतर गुटबाजी और खींचतान तेज हो गई है। झारखंड भाजपा इस समय उस नाव की तरह दिख रही है, जो बहाव के साथ अपनी दिशा तय करने की कोशिश कर रही है, लेकिन किसी ठोस निष्कर्ष तक नहीं पहुंच पा रही। रघुवर दास के प्रदेश में सक्रिय होने के बाद उनके प्रदेश अध्यक्ष बनने की संभावनाएं भी बढ़ गई हैं, लेकिन पार्टी के अंदर मौजूद धड़े इस फैसले के खिलाफ खड़े नजर आ रहे हैं। ऐसे में शीर्ष नेतृत्व के लिए यह तय करना कठिन हो गया है कि संगठन की कमान किसके हाथ में सौंपी जाए।
संगठन में नेतृत्व को लेकर यह असमंजस भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। गुटबाजी के कारण पार्टी के भीतर आपसी समन्वय की कमी दिख रही है, जिससे कार्यकर्ताओं में भी असमंजस की स्थिति बनी हुई है। प्रदेश भाजपा नेतृत्व इस समय एक कठिन दौर से गुजर रहा है, जहां एक तरफ संगठन को मजबूती देने की जरूरत है, तो दूसरी तरफ अंदरूनी मतभेदों को भी नियंत्रित करना जरूरी हो गया है। बाबूलाल मरांडी को विधायक दल का नेता बनाए जाने के फैसले के बाद अब संगठन स्तर पर भी जल्द कोई बड़ा निर्णय लिया जा सकता है।
भाजपा की झारखंड इकाई के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि वह अपने अंदरूनी मतभेदों को कैसे हल करेगी और प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी किसके हिस्से में जाएगी। आने वाले दिनों में पार्टी की रणनीति किस दिशा में जाती है, यह देखना दिलचस्प होगा।