Location: Garhwa
बंशीधर नगर: जीयर स्वामी जी महाराज ने रविवार को जतपुरा गांव में आयोजित भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के दौरान कहा कि मानवता, राष्ट्र, और संस्कार का संरक्षण करने वाले कर्म, आचरण, और व्यवहार ही सच्ची भक्ति का स्वरूप हैं। उन्होंने बताया कि संस्कारहीन साधन केवल बोझ बन जाते हैं, जबकि संस्कारयुक्त साधन उपहार स्वरूप में प्रतिष्ठित होते हैं।
स्वामी जी ने कहा कि चाहे कोई भी कितना वैभवशाली क्यों न हो, यदि उसका जीवन अनुशासन से परे है, तो वह विनाश की ओर अग्रसर हो सकता है। शास्त्रों के अनुसार, तीन प्रकार के कर्म—क्रियमाण, संचित, और प्रारब्ध—मनुष्य के जीवन और भाग्य का निर्माण करते हैं। क्रियमाण कर्म का फल तत्काल मिलता है, संचित कर्म का फल समयानुसार मिलता है, जबकि प्रारब्ध कर्म व्यक्ति के भाग्य का निर्धारण करते हैं। उन्होंने कहा कि विपरीत परिस्थितियों में भी जो लोग मर्यादापूर्वक और सुखपूर्वक जीवन जीते हैं, उनका यह सौभाग्य उनके संचित कर्मों का परिणाम होता है।
जीयर स्वामी जी ने सभी को प्रेरित करते हुए कहा कि अपने विचारों और कर्मों पर नियंत्रण रखना अत्यंत आवश्यक है। विचार ही कर्म बनते हैं, और कर्म ही भाग्य का निर्माण करते हैं। एक पुरुषार्थी और कर्मठशील व्यक्ति को अंतिम क्षण तक अपने कर्मपथ पर अडिग रहना चाहिए।