
Location: Garhwa
भारत सरकार ने शनिवार शाम पाकिस्तान के साथ सीजफायर पर सहमति जताई है। लेकिन यह निर्णय देश की जनता के भीतर कई गंभीर सवाल खड़े कर रहा है। वर्षों से “अपने मामलों में किसी तीसरे देश की पंचायती नहीं मानेंगे” जैसी सख्त नीति का दम भरने वाली सरकार ने क्या अब अमेरिका के दबाव में आकर यह समझौता किया है?
इस संदर्भ में कारगिल युद्ध का प्रसंग प्रासंगिक हो जाता है। जब अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से सीजफायर की अपील की थी, तब अटल जी ने साफ शब्दों में जवाब दिया था—”क्या पाकिस्तान भी सीजफायर के लिए तैयार है?” उन्होंने दबाव को ठुकरा कर निर्णायक युद्ध जारी रखा था, भले ही पाकिस्तान ने न्यूक्लियर हथियार की धमकी दी हो।
आज वही भारतीय जनता पार्टी की सरकार है, लेकिन क्या इसने अतीत से कुछ सीखा? खासकर तब, जब सीजफायर की घोषणा के महज कुछ घंटे बाद ही पाकिस्तान ने ड्रोन हमलों और गोलीबारी से इसका उल्लंघन कर दिया। पाकिस्तान की फितरत पर किसी को शक नहीं—वह भरोसे के काबिल नहीं है।
सबसे बड़ी बात यह है कि हाल ही में हमारी सेना ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद से लगातार आतंकवाद के खिलाफ सफलता की दिशा में बढ़ रही थी। पाकिस्तान की नापाक हरकतों का मुँहतोड़ जवाब देते हुए सेना उसे घुटनों पर लाने के करीब थी। ऐसे समय में अचानक सीजफायर का फैसला न सिर्फ चौंकाने वाला है, बल्कि यह सवाल भी खड़ा करता है कि क्या कोई दबाव इसके पीछे है?
जहाँ तक पहलगाम हमले की बात है, जिन आतंकियों ने धर्म पूछकर 26 निर्दोषों की हत्या की, वे अब भी फरार हैं। ऐसे में पाकिस्तान से किस तरह का भरोसा मिला, यह भी स्पष्ट नहीं है।
सीजफायर जैसे निर्णय तब लिए जाते हैं जब सामने वाले पर भरोसे की कोई ठोस वजह हो। लेकिन जब वह बार-बार विश्वासघात करता रहा हो, तब ऐसे फैसले भारत की सुरक्षा नीति पर प्रश्नचिह्न लगाते हैं।