Location: Garhwa
जिला मुख्यालय गढ़वा में घाटी सदर अस्पताल गढ़वा के अस्पताल प्रबंधक डॉक्टर सतनारायण के साथ मारपीट का घटना इस सप्ताह की सबसे बड़ी घटना रही जो सुर्खियों में छाई रही। दरअसल इस घटना में जिसके हाथ में स्वास्थ्य व्यवस्था सुदृढ़ करने की जवाबदेही है उसी के द्वारा व्यवस्था में खामी बतलाकर अस्पताल प्रबंधन के साथ मारपीट किया गया है जो किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में स्वीकार्य नहीं हो सकती है।
मगर दूसरा पक्ष यह भी है कि सदर अस्पताल गढ़वा सहित गढ़वा जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था विगत काफी दिनों से सवालों के घेरे में रही है। और तो और सदर अस्पताल के चिकित्सक अस्पताल में इलाज करने के बजाय अपने निजी क्लीनिक में ही अधिक समय देकर बीमार लोगों का इलाज के नाम पर आर्थिक दोहन कर रहे हैं। इतना ही नहीं जिनके हाथ में स्वास्थ्य व्यवस्था को सुधारने की जिम्मेवारी है वैसे स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारी भी सदर अस्पताल के एक किलोमीटर के दायरे में निजी चिकित्सालय चलाने की प्रतिबंध का धज्जियां उड़ा रहे हैं। नतीजा है कि सदर अस्पताल गढ़वा के आजु बाजू में कुकरमूत्ते की तरह सरकारी चिकित्सकों के संरक्षण में संचालित निजी अस्पताल लूट का अड्डा बना हुआ है।
हालत यह है कि बीमार लोगों को सदर अस्पताल में इलाज करने के बजाय दलालों द्वारा अस्पताल में ही पदस्थापित चिकित्सकों के निजी क्लीनिक में इलाज करने के लिए विवश तक किया जाता है। जहां पर चिकित्सकों द्वारा मरीज से विभिन्न प्रकार की जांच के नाम पर 40 से 60 फिशदी जांच घर से कमीशन वसूली जाती है। साथ ही इलाज के नाम पर दवा से लेकर , अल्ट्रासाउंड, सीटी स्कैन ईसीजी के नाम पर भी आर्थिक दोहन किया जाता है । हद तो तब पर कर जाता है जब रक्त चढ़ाने के नाम पर भी मरीज से खून बेचने का सामाजिक लवादा ओढ़कर कतिपय कारोबार करने वालों से सांठ -गांठ कर रक्त के नाम पर आर्थिक शोषण किया जाता है। ऐसे में चिकित्सा कर्मियों को भी अपने गिरेबान में झांकने की जरूरत है। क्योंकि कौन नहीं जानता है कि सदर अस्पताल गढ़वा में प्रसव के नाम पर दाई से लेकर नर्स तक मरीजों से मनमानी रकम वासूलतीं हैं।
रात्रि कालीन सेवा के नाम पर इमरजेंसी वार्ड में कुशल एवं अनुभवी चिकित्सकों के बजाय आयुर्वेदिक चिकित्सकों तक की ड्यूटी लगा दी जाती है ।अस्पताल से चिकित्सकों की गायब रहने की कहानी तो कुछ अलग ही है। हालत यह है कि सदर अस्पताल गढ़वा में पदस्थापित कई चिकित्सक जिला मुख्यालय गढ़वा तो क्या जिले से भी बाहर रहकर भी प्रैक्टिस कर रहे हैं, जिसमें महिला चिकित्सकों की भी नाम शामिल है। ऐसे में स्वास्थ्य विभाग की अव्यवस्था जग जाहिर है।
निजी अस्पतालों में भी कुछ ऐसे अस्पताल हैं जहां पर आए दिन प्रसूति महिला जच्चा बच्चा एवं इलाज कर रहे लोगों को नीम हकीम चिकित्सकों के कारण जान गंवानी पड़ती है। लगभग डेढ़ साल पूर्व जिले के तत्कालीन उपयुक्त रमेश घोलक ने ऐसे कई जिला मुख्यालय गढ़वा सहित जिला मुख्यालय के बाहर के अवैद्ध अस्पतालों को सील कर बंद कराया था। तब कुछ अंकुश लगी थी। मगर रमेश घोलक के गढ़वा से स्थानांतरण होने के बाद पुरानी व्यवस्था संचालित करने में झोलाछाप चिकित्सक पूरी तरह से सदर अस्पताल प्रबंधन की मिली भगत से सफल हो चुके हैं। ऐसे निजी अस्पतालों में आए दिन मरीज का आर्थिक दोहन तो हो ही रहे हैं ।जान भी गंवानी पड़ती हैं।
ऐसी विषम परिस्थिति का जिम्मेवार कहीं न कहीं पूरी तरह से सरकार की होती है , जिसका एक अंग विधायक के स्वास्थ्य प्रतिनिधि कंचन साहू भी हैं। ऐसे में सदर अस्पताल के प्रबंधक के डॉक्टर सतनारायण के साथ मारपीट श्री साहू द्वारा किया जाना कहां तक उचित है?
जिस सदर अस्पताल के प्रबंधक डॉक्टर सतनारायण के साथ मारपीट किया गया है उनकी नियुक्ति जनवरी माह में ही हुई है ।उनके नियुक्ति के साथ ही उन्हें टारगेट करने का सिलसिला शुरू हो चुका था। उन्हें फरवरी माह में एक बैठक के दौरान सरेआम बेइज्जत किया गया था। वैसे भी डॉक्टर सतनारायण को प्रभार तक पुरी तरह नहीं सौंपा गया है ।इसके पीछे भी कहीं ना कहीं साजिश की बू आती है।
सदर अस्पताल गढ़वा की स्वास्थ्य व्यवस्था सुधारने की जिम्मेदारी सिविल सर्जन गढ़वा की है ,ऐसे में सबसे कमजोर कड़ी सदर अस्पताल के प्रबंधक पर कानून को हाथ में लेकर मारपीट करने जैसी घटना को अंजाम देना कहीं न कहीं संबंधित अस्पताल प्रबंधक के साथ पूर्वाग्रह से ग्रसित होने की ओर इशारा करता है ।सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सदर अस्पताल की व्यवस्था को सुधारने में अस्पताल प्रबंधक भूमिका नगण्य है। बावजूद उन्हें टारगेट किया जाना कहीं से भी उचित प्रतीत नहीं होता है। वैसे भी कंचन साहू का सदर अस्पताल में स्वास्थ्य प्रतिनिधि बनने के साथ ही विवाद शुरू हो चुका था विवाद के फेहरिस्त में सदर अस्पताल में कई बड़ी-बड़ी घटना घट चुकी है । फरवरी 2023 की घटना भी याद करना चाहिए तब तत्कालीन सिविल सर्जन डॉक्टर अनिल कुमार तथा डीएस डॉक्टर अवधेश कुमार सिंह हुआ करते थे उस समय भी भारी बवाल सदर अस्पताल में हुआ था।
रक्षक ही रक्षक बनने की स्टाइल में स्वास्थ्य प्रतिनिधि श्री साहू द्वारा अस्पताल प्रबंधक के साथ मारपीट किए जाने की घटना पूरी तरह से शर्मनाक है ।रही बात इस मामले में प्राथमिकी दर्ज करने का तो फरवरी 2023 की घटना में भी दोनों ओर से प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी। तब राजव्यापी मामला उछला था, उसका परिणाम क्या हुआ याद करने की जरूरत है। उस घटना से भी अनुमान लगाया जा सकता है कि स्वास्थ्य प्रतिनिधि पर भले ही प्राथमिक दर्ज हो चुकी है। पर इस इस पर आगे कुछ कार्रवाई भी होगा, अथवा 2023 की घटना की तरह सुलह करने को विवस किया जाएगा यह तो आने वाला वक्त तय करेगा परन्तु इतना अवश्य कहा जा सकता है की यह घटना सईंयां भए कोतवाल अब डर काहे का का की सोच का ही परिणाम है।