Location: Ranka
रंका प्रखंड के सभी चौदह पंचायतों के इक्यासी गांवों में सुशिक्षित समाज की स्थापना की परिकल्पना को ले सरकार ने यहां के नौनिहालों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान कराने व देश व समाज के सुनहरे भविष्य के साथ साथ भारत को विश्वगुरु के पद पर आसीन कराने की सोच के तहत केन्द्र व राज्य सरकारें दिल खोलकर कर राशि खर्च कर रही है
जिनके कंधों पर गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा प्रदान करने एवं जिन अधिकारियों को उसके देख रेख का जिम्मा है वहीं लोग अपने कर्तव्यों के निर्वहन के प्रति गैर ज़िम्मेदार बने हुए हैं इस मामले में एक गहन अध्ययन के मुताबिक वर्तमान में शिक्षण कार्य से जुड़े युवा पीढ़ी के शिक्षकों में शिक्षा के स्तर को बेहतर बनाने तथा छात्रों को बेहतर एवं गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान कराने की ललक है मगर वर्तमान में विभागीय कार्य और आए दिन सरकारी स्तर के विभिन्न कार्यक्रमो से शिक्षण कार्य अवरूद्ध हो जाया करता है जिससे इन कर्मठ गुरुओं में काफी असंतोष देखा जाता है रही सही कसर प्रखंड स्तर पर विद्यालयों के मॉनिटरिंग के लिए विभाग द्वारा बैठाए गए बीआरसी कार्यालय के अधिकारी पूरा करते हैं शिक्षको से भयादोहन एक बेहतर जरिया हो चुका है नतीजतन द्वंद में पड़े शिक्षकों में नौनिहालों के भविष्य को संवारने की इच्छा शक्ति कुंठित होती दिखाई पड़ती है और इस स्थिति को उत्पन्न किए जाने में अधिकारियों को साथ देने में कुछ अकर्मण्य शिक्षको की भी भूमिका बताई जाती है ऐसे में सबसे ज्यादा प्रभावित देश का भविष्य बताए जाने वाले नौनिहाल होते हैं सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी के अनुसार रंका प्रखंड के सभी चौदह पंचायतों में कुल 153 प्राथमिक एवं मध्य विद्यालय हैं जिनमें 18515 छात्र छात्राओं के भविष्य निर्माण के लिए सरकार ने 405सरकारी शिक्षक एवं 306 पारा शिक्षकों को प्रतिनियुक्त कर रखा है एक आंकड़े के मुताबिक 18515 छात्र छात्राओं के शिक्षण कार्य के लिए सरकार प्रतिमाह एक करोड़ उनचालिस लाख चौरानवे हजार आठ सौ चौहत्तर रूपए वेतन एवं मानदेय मद में तथा विद्यालयों में वार्षिक अनुदान मद में बावन लाख पैंतीस हजार रुपए खर्च करती है जिसमें मध्याह्न भोजन में खर्च किया जाने वाला राशि अलग है मालूम हो कि करोड़ों रुपए खर्च किए जाने के बावजूद परिणाम क्या है कक्षा एक से छः तथा छः से आठ तक के नब्बे फीसदी से अधिक छात्र छात्राओं को सामान्य ज्ञान के विषय में जानकारी नहीं के बराबर होती है जिसे कभी भी किसी भी विद्यालय में इमानदारी से परखा जा सकता है ऐसी स्थिति में प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि यह क्या हो रहा है इस बारे में गहन चिंतन करने वाले एक बुजुर्ग ने बताया कि देश की आजादी के बाद से तत्कालीन सरकार ने एक सोची-समझी रणनीति के तहत ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा न मिल सके इसके लिए एक षड्यंत्र पूर्वक रणनीति बनाई गई जिसके तहत ग्रामीण इलाकों के बच्चों को सिर्फ साक्षर बनाने का नाटक किया जाना है वरना अधिकारियों एवं धनाढ्य वर्ग के बच्चों का क्या होगा इसलिए ग्रामीण इलाकों के बच्चों को सिर्फ साक्षर बनाने का खेल जारी किया गया जो आज भी जारी है उन्होंने कहा कि पूर्व की सरकार ने शिक्षा का अधिकार संबंधी कानून तो बना दिया मगर हुआ क्या सब कुछ टांय-टांय फिस् और यह स्थिति लाने में शिक्षा विभाग के अधिकारियों की अहम भूमिका बताई जाती है एक शिक्षक ने सामुहिक दर्द बयां करते हुए कहा कि रंका बीआरसी में बीपीओ का आतंक व्याप्त है जिसकी जानकारी जिले के सभी अधिकारियों को भी है शिक्षकों से अकारण ही स्पष्टीकरण के नाम पर भयादोहन विद्यालयों में वार्षिक अनुदान की फर्जी बिल बनवाकर आधी से अधिक राशि जमा करने का दबाव दिया जाता रहा है जिसने उस मानदंड को पूरा नहीं किया उन्हें कई तरह से मानसिक और आर्थिक प्रताड़ना का शिकार बनना पड़ता है ऐसे में सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि शिक्षा का गुणात्मक बिकास वर्तमान सरकारी ब्यवस्था में समाज के अंतिम पंक्ति में खड़े गरीब एवं कमजोर तबके के नौनिहालों तक किस तरह पहुंचाया जा सकेगा। ऐसे में ढांचागत सुविधाओं का पूरी इमानदारी से सुधार किए जाने की आवश्यकता है जो वर्तमान सरकारी ब्यवस्था में असंभव सा प्रतीत होता है।