Location: रांची
रांची : कुछ दिनों के अंदर मैने कांग्रेस आलाकमान के बड़े नेताओं का गर्व के साथ दिया गया बयान सुना. इस पर गौर किया. चिंतन-मंथन किया. फिर सोचा कांग्रेस की ऐसी दुर्गति क्यों हो रही है. कांग्रेसी कुछ समझने को तैयार क्यों नहीं हैं. जब टाप लीडर इस तरह के बयान देंगे तो फिर नीचे के नेताओं के बीच क्या संदेश जाएगा. पहले चर्चा कांग्रेस के लाडले राहुल गांधी की. राहुल गांधी ने बिहार में हुई जाति जनगणना पर सवाल खड़े किए. आंकड़े को फर्जी बताया. कहा, बिहार जैसी फर्जी जाति जनणनना नहीं चाहिए. अब राहुल गांधी को कौन समझाए. किस कांग्रेसी की हिम्मत है बोलने की.
बिहार में जब जातीय जनगणना हुई थी तो नीतीश कुमार के नेतृत्व में इंडिया गठबंधन की सरकार थी. कांग्रेस भी सरकार में शामिल थी. तब राहुल गांधी व राजद के राजकुमार तेजस्वी यादव जातीय जनगणना पर पूरे देश में वाहवाही लूट रहे थे. कह रहे थे कि देश को बिहार ने रास्ता दिखा दिया. जो काम किसी प्रदेश में नहीं हुआ, उसे बिहार ने कर दिखाया. अब जब बिहार में एनडीए की सरकार चल रही है तो राहुल गांधी जातीय जनगणना के आंकड़े को फर्जी बता रहे हैं. यानि अपनी सरकार के कामकाज पर सवाल खड़ा करना. इसलिए तो राहुल को लोग कहते हैं…?
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने महाकुंभ पर टिप्पणी की. कहा, गंगा में डुबकी लगाने से गरीबी दूर नहीं होगी. यह सीधे-सीधे धार्मिक आस्था पर चोट है. करोड़ों लोग हरदिन कुंभ में स्नान कर पुण्य अर्जित कर रहे हैं. भगदड़ व प्रयागराज तक पहुंचने में हो रही तमाम तरह की कठिनाइयों के बावजूद लोगों का सैलाब उमड़ रहा है. ऐसे में खड़गे की टिप्पणी से उनकी सोच सामने आती है. आजादी के बाद साठ सालों तक कांग्रेस सत्ता में रही. कांग्रेस ने गरीबी हटाओ का नारा दिया. फिर भी गरीबी नहीं हटी. बल्कि कांग्रेस ही सत्ता से हट गई. अब गंगा स्नान को गरीबी से जोड़कर देख रहे हैं. वाह रे कांग्रेसी सोच.
अब सोनिया गांधी को लीजिए. उन्होंने देश में पहली बार आदिवासी समुदाय से राष्ट्रपति बनीं द्रौपदी मुर्मू पर आपत्तिजनक टिप्पणी की. उन्हें बेचारी व थकी हुई कहा. इसके पूर्व भी कांग्रेसी कई तरह की टिप्पणी राष्ट्रपति पर कर चुके हैं. बेहतर होता सोनिया गांधी राष्ट्रपति पर टिप्पणी करने के बदले मोदी सरकार के कामकाज पर टिप्पणी करतीं. क्योंकि संसद या विधानसभाओं में राष्ट्रपति व राज्यपाल वहीं भाषण पढ़ते हैं जो सरकार उपलब्ध कराती है. यह संवैधानिक परंपरा है. भाषण के लिए राष्ट्रपति व राज्यपालों को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है.
इसी दौरान झारखंड कांग्रेस से जुड़ा हुआ एक मामला भी सामने आया. विधानसभा चुनाव के दौरान जब बरही से कांग्रेस विधायक उमा शंकर अकेला का टिकट कटा तो उन्होंने दो करोड़ में टिकट बेचने का आरोप लगाया. कांग्रेस प्रभारी गुलाम मीर पर सीधा आरोप लगाया. कहा, उनसे दो करोड़ की मांग की गई थी, नहीं दिया तो टिकट कट गया. अकेला बागी होकर चुनाव लड़े. बरही से कांग्रेस हार गई. अब देखिए दो महीने के अंदर ही अकेला की कांग्रेस में वापसी हो गई. आरोपों के सारे पाप धुल गए. लोग कह रहे हैं यही कांग्रेस है भई . इसके खेल निराले हैं. इसलिए दुर्गति पर चर्चा बेमानी है.